अभी तो शाम है शब जल्द आने वाली है। अभी चराग सजे हैं, जरा ठहर जाओ।।
तुम्हीं से ईद है, तुमसे मेरी दिवाली है। मेरी ये अर्ज है, कुछ देर तो ठहर जाओ।।
तुम्हारे वास्ते दिल का मकान खाली है। दिल-ए-चमन में मिरे, दो घड़ी ठहर जाओ।।
ज़फा-ए-दौर में, उम्मीद भी मवाली है, गम-ए-दयार में आकर जरा ठहर जाओ।।
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गुरुवार, 16 जुलाई 2009
‘‘जरा ठहर जाओ’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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तुम्हारे वास्ते दिल का मकान खाली है
जवाब देंहटाएंवाह -- सुन्दर
मयंक जी बहुत खूब लाजवा्ब आपके श्रम की दाद देनी पडेगी कि आप रोज़ अपने ब्लोग maintain करते हैं बधाई
जवाब देंहटाएंyadon ke charag abhi jalaye hi hain
जवाब देंहटाएंzara thahar jao
dil ki shama abhi jalayi hi hai
zara thahar jao
bahut hi pyari rachna hai.
bahot hi khubsurat rachanaa ke liye dil se dhero badhaayee
जवाब देंहटाएंarsh
तुम्हीं से ईद है, तुमसे मेरी दिवाली है।
जवाब देंहटाएंमेरी ये अर्ज है, कुछ देर तो ठहर जाओ।।
umda gazal ke liye badhai.
आज तो तबियत हरी हो गयी यद्यपि बारिश नहीं हो रही है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगी आज की आप की रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत लाजवाब जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
नहीं उम्मीद के हम आज की सहर देखें
जवाब देंहटाएंये रात हमपे कड़ी है ज़रा ठहर जाओ
आगे हम कुछ न कहेंगे शास्त्री जी आप समझ गए होंगे।
kya baat hai bahut sunder.
जवाब देंहटाएंमयंक जी,
जवाब देंहटाएं'मयंक' नाम का मेरे जीवन में बहुत ही महत्व है, ये मेरे बेटे का नाम है, इसलिए इस नाम को देखते ही बरबस मन खिंचा जाता है,
तुम्हारे वास्ते दिल का मकान खाली है।
दिल-ए-चमन में मिरे, दो घड़ी ठहर जाओ।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
बहुत बहुत धन्यवाद ...
वाह बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने!
जवाब देंहटाएंवाह!!
जवाब देंहटाएं