हौसला रख कर जरा आगे बढ़ो, फासले इतने तो मत पैदा करो।
मत अमावस से भरी बातें करो।
मत इसे जज्बात में रौंदा करो।
हारकर, थककर न यूँ बैठा करो।
मुल्क पर जानो-जिगर शैदा करो। |
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सोमवार, 20 जुलाई 2009
‘‘पाँच शेर’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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छोड दो शिकवों गिलों की डगर देश पर जानो जिगर शैदां करो
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक उपदेश देती सुन्दर पोस्ट के लिये आभार और बधाई्
वाह क्या बात है! बहुत ही सुंदर लिखा है आपने खासकर ये लाइन "उलझनों का नाम ही है ज़िन्दगी..."! बिल्कुल सही कहा है आपने हमें कभी हारना नहीं चाहिए बल्कि ज़िन्दगी में आगे बढते रहना चाहिए!
जवाब देंहटाएंsahi uljhano ka naam zindagi,behtarin
जवाब देंहटाएंsundar..
जवाब देंहटाएंछोड़ दो शिकवों-गिलों की डगर को,
मुल्क पर जानो-जिगर शैदा करो।
aapki kavita se madhdhyam se jo vichar sancharit hote hai sachmuch bade hi sundar hote hai..
kavita aur bhav dono behad umda
badhayi!!!
bahut hi sarthak hain sabhi sher......prernadayi.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंउलझनों का नाम ही है जिन्दगी,
जवाब देंहटाएंहारकर, थककर न यूँ बैठा करो।
बहुत ही सुंदर लिखा है
छोड़ दो शिकवों-गिलों की डगर को,
जवाब देंहटाएंमुल्क पर जानो-जिगर शैदा करो
सार्थक नए उमंग भरती..........नयी प्रेरणा देती लाजवाब रचना है
बहुत खूब, अच्छा संदेश दिया है.
जवाब देंहटाएंजिन्दगी है बस हकीकत पर टिकी,
जवाब देंहटाएंमत इसे जज्बात में रौंदा करो।
khoobsurat sher...
bahut badhiya..
जिन्दगी है बस हकीकत पर टिकी,मत इसे जज्बात में रौंदा करो।
जवाब देंहटाएंउलझनों का नाम ही है जिन्दगी,हारकर, थककर न यूँ बैठा करो।
वाह कितनी सही बात कही है आपने.
रामराम.
बहुत खूब.. इतने कम अल्फ़ाज़ में आपने जैसे क्या क्या समझा दिया.. आभार
जवाब देंहटाएंएक से एक शेर निकाले हैं, बहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब शेर कहे शास्त्री जी मगर ये तो ग़ज़ल ही थी आप ५ शेर क्यों कह रहे हैं जी ?
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ. शास्त्री साहब,
जवाब देंहटाएंजिन्दगी के फलसफ़े से अशआर सुकून दे गये :-
जिन्दगी है बस हकीकत पर टिकी,
मत इसे जज्बात में रौंदा करो।
उलझनों का नाम ही है जिन्दगी,
हारकर, थककर न यूँ बैठा करो।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत ख़ूबसूरत अशआर
जवाब देंहटाएं---------------
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very nice and positive think
जवाब देंहटाएंgud'