मानव दानव बन बैठा है, जग के झंझावातों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।
मुख में राम बगल में चाकू, मनवा है कितना पापी, दिवस-रैन उलझा रहता है, घातों में प्रतिघातों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।
ठोकर पर ठोकर खाकर भी, खुद को नही संभाला है, ज्ञान-पुंज से ध्यान हटाकर, लिपटा गन्दी बातों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।
भूल चुके हैं सीधी-सादी, सम्बन्धों की परिभाषा। विष के पादप उगे बाग में, जहर भरा है नातों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।
बाँट लिया गुलशन को, लेकिन दूर न मन के भेद हुए, खेल रहे हैं ग्राहक बन कर, दुष्ट-बणिक के हाथों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।। |
---|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
सोमवार, 27 जुलाई 2009
‘‘जग के झंझावातों में।’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
रचना की हर एक पंक्तियाँ सच्चाई बयान करती है! बहुत ही सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंsunder rachana,khas kar aakhari stanza bahut khub
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ प्रस्तुत सशक्त रचना, आभार्
जवाब देंहटाएंek sashakt rachna.......zindagi ki sachchaiyon ko ujagar karti huyi
जवाब देंहटाएंएक चमन में रहते-सहते, जटिल-कुटिल मतभेद हुए,बाँट लिया गुलशन को, लेकिन दूर न मन के भेद हुए,खेल रहे हैं ग्राहक बन कर, दुष्ट-बणिक के हाथों में।दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।
जवाब देंहटाएंवाह शाश्त्रीजी नमन है आपको.
रामराम.
आदरणीय डॉ. शास्त्री साहब,
जवाब देंहटाएंहिन्दी गीतों का लुप्तप्राय सौन्दर्य आज देखने को और पढ़ने को मिला।
आज के हालातों को बयाँ करता हुआ गीत अपने भोले भावों से शिक्षा भी दे रहा है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सशक्त रचना है!
जवाब देंहटाएं------------
शैवाल (Algae): भविष्य का जैव-ईंधन
सच bolti हुयी रचना ............ लाजवाब, gazab का लिखा है
जवाब देंहटाएंपूरी रचना ही लाजवाब है हमेशा की तरह सच के करीब
जवाब देंहटाएंमुख में राम बगल में चाकू, मनवा है कितना पापी,
दिवस-रैन उलझा रहता है, घातों में प्रतिघातों में।
लाजवाब पँक्तियाँ हैं बहुत बहुत बधाई
आज की असलियत बयान कर दी है .. आपने इस रचना में !!
जवाब देंहटाएंshabd-shabd saarthak hai.........
जवाब देंहटाएंwaah
waah
kya baat kahdee shreeman !
abhibhoot kar diya
badhaai !
बहुत खूब शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंमानव दानव बन बैठा है,
जग की पग में यही पाते है
हरतरफ इंसान की शक्ल में,
बस भेडिये ही नजर आते है !