शब्दों के मौन निमन्त्रण से, बिन डोर खिचें सब आते हैं। मुद्दत से टूटे रिश्ते भी, सम्बन्धों में बंध जाते हैं।। इनके बिन बात अधूरी है, नजदीकी में भी दूरी है, दुनिया दारी में पड़ करके, बतियाना बहुत जरूरी है, मकड़ी के नाजुक जालों में, बलवान सिंह फंद जाते हैं। मुद्दत से टूटे रिश्ते भी, सम्बन्धों में बंध जाते हैं।। पशु-पक्षी और संगी-साथी, शब्दों से मन को भरमाते, तीखे शब्दों से मीत सभी, पल भर में दुश्मन बन जाते, पहले तोलो, फिर कुछ बोलो, स्वर मधुर छन्द बन जाते हैं। मुद्दत से टूटे रिश्ते भी, सम्बन्धों में बंध जाते हैं।। |
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शनिवार, 11 जुलाई 2009
"बिन डोर खिचें सब आते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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bahut sunder,sahi madhurwani man moh leti hai.
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता!!!!!
जवाब देंहटाएंइतने सुंदर कविता है मन,
पढ़ कर हर्षित होता है..
एक एक शब्दों के उपर,
हृदय समर्पित होता है.
आपने तो कोमल भावनाओं से हम सब को बांध रखा है।
जवाब देंहटाएंbahut badhiya likha ........shabdon ki bhasha aisi hi hoti hai.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंआप ने कविता मै बहुत सुंदर शिक्षा दी, बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दुनिया दारी में पड़ करके,
जवाब देंहटाएंबतियाना बहुत जरूरी है,
bahut sundar baat kahi hai aapne.
इतना सुंदर लिखा है आपने की तारीफ के लिए शब्द कम पर गए!
जवाब देंहटाएंशब्दों के मौन निमन्त्रण से,
जवाब देंहटाएंबिन डोर खिचें सब आते हैं।
आपके शब्दों का मौन निमंत्रण हमें खीच कर लाया है
बड़े प्रेम से 'बात-चीत' का importanace हमें समझाया है ||
बड़े काम की बात आपने बताई..
इसपर अमल करते रहेंगे..
धन्यवाद...
bahut sundar baat kahi hai aapne.
जवाब देंहटाएं