धरा में जो दरारें थी, मिटी बारिश की बून्दों से,
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बुधवार, 8 जुलाई 2009
‘‘गगन में छा गये बादल’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
धरा में जो दरारें थी, मिटी बारिश की बून्दों से,
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बरखा का बहुत सुन्दर वर्णन किया है
जवाब देंहटाएं---
नये प्रकार के ब्लैक होल की खोज संभावित
वर्षा का बहुत सुंदर वर्णन किया है.. काश हमारे गगन में भी बादल छाएं.. इंतजार करा रहे हैं..
जवाब देंहटाएंbaarish ka to intejaar hi hai. lekin aap ki kavita ne avashya bhigo diya.
जवाब देंहटाएंआये और अमृत बरसा कर गये बादल।
जवाब देंहटाएंमयंकजी आपकी रचना पढ कर आज इधर भी बादल आ गये मगर बिन बरसे चले गये सुन्दर रचना आभार्
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब वर्षा गीत. शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंरामराम.
धरा में जो दरारें थी, मिटी बारिश की बून्दों से,किसानों के मुखौटो पर, खुशी चमका गये बादल। हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।
जवाब देंहटाएंbahut sundar!!!
waah waah,barkha ka itna sundar varnan kiya hai ki ab to hamara dil bhi kahta hai hamare shahar bhi aa jayein badal.
जवाब देंहटाएंचलो गाव तक पहुंचा तो बादल
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
अच्छा है भाई. बादल हर जगह छा जाएँ ....
जवाब देंहटाएंwaah Sukhad ehsaas se bhari kavita..
जवाब देंहटाएंकितनी सुन्दर कविता!! एक्दम बारिश का अहसास कराती....बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्द चित्र.
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ. शास्त्री साहब,
जवाब देंहटाएंहम भी यहाँ इन्दौर में तर-ब-तर हो रहे हैं, बारिश ऐसी ही सुहावनी होती है।
पढते हुये भी भीगने की ठिठुरन महसूस की जा सकती है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
हमारे गांव में भी चलकर आ गये आज बादल, बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन रचना, आभार्
जवाब देंहटाएंबड़ी हसरत दिलों में थी, गगन में छा गये बादल।
जवाब देंहटाएंहमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।
shashtri ji ........... आपके शब्द, aapki rachna, बारिश से भीगता एहसास लाजवाब है ............kaash hamaare desh भी baadal आ jaayen
हम तो इंतजार कर रहे है..
जवाब देंहटाएंइस बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ! आपकी ये सुंदर कविता पड़कर ऐसा लगा मानो बारीश शुरू हो गई है! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएं