आसमान में बादल छाये, इन्द्रधनुष भी दिया दिखाई।
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शनिवार, 18 जुलाई 2009
‘‘सुख की मुस्कान नही छाई’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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क्या बात है शास्त्री जी!! बहुत सुन्दर और कोमल रचना.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सामयिक रचना के लिये आभार हर विश्य पर आपकी रचना अनूठे रंग लिये होती है बधाई
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha aapne.........barish bina sab jagah yahi haal bana hua hai.
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna
यथार्थ वादी रचना...अभी भी आस है...शायद मेघ बरसें...
जवाब देंहटाएंनीरज
इंद्रदेव से शिकायत जायज है.. आभार
जवाब देंहटाएंहम सब आपसे सहमत हैं.
जवाब देंहटाएंत्रस्त हुए तन-मन गर्मी से जनता आकुल-व्याकुल है,
जवाब देंहटाएंजन मानस में अब तक भी, सुख की मुस्कान नही छाई।
--काश, जल्द वर्षा हो!!!
behad sunder rahana,varun devta sun le ye arz aur aarish ho.
जवाब देंहटाएंShastri ji... aap waakai bahut accha likhte ho, itna seedha aur saral ki mann ko chuu jata hai ...!
जवाब देंहटाएंबहुत सामयिक है जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
देख-देख जिउरा हरसे, रिम-झिम बून्दों को तरसे,
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी
आप ने तो मुझे आपकी कलम का कायक ही बना दिया है।
अति सुन्दर
आभार/शुभमगल
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
भुल सुधार
जवाब देंहटाएंकायक= कायल
यहाँ तो ऐसी काली बदरिया छई हुई है कि बस क्या कहने! शायद आपकी कविता का ही असर है.
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी आपकी हर एक रचना इतना सुंदर है कि तारीफ के लिए अल्फाज़ कम पर जाते हैं!
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