आज फिर एक पुरानी रचना! हाथ लेकर जब चले, तुम साथ में, प्रीत का मौसम, सुहाना हो गया है। इक नशा सा, जिन्दगी में छा गया, दर्द-औ-गम, अपना पुराना हो गया है। जन्म-भर के, स्वप्न पूरे हो गये, मीत सब अपना, जमाना हो गया है। दिल के गुलशन में, बहारें छा गयीं, अब चमन, मेरा ठिकाना हो गया है। चश्म में इक नूर जैसा, आ गया, बन्द अब आँसू , बहाना हो गया है। तार मन-वीणा के, झंकृत हो गये, सुर में सम्भव, गीत गाना हो गया है। |
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मंगलवार, 6 जुलाई 2010
“..मौसम सुहाना हो गया है” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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वाह्………………गज़ब का लिखा है और आज तो यहाँ सच मे मौसम सुहाना बना हुआ है और अभी जोरदार बारिश हो कर चुकी है ऐसे मे आपकी कविता ने तो सोने पे सुहागे का काम किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया मौसम बनाया है आपने, आभार !
जवाब देंहटाएंशानदार ...
जवाब देंहटाएंhamesha chahta tha apaki post pe pehla comment karu.....
जवाब देंहटाएंkismat ka khel dekho aaj sab se pehle aana ho gaya hai!
vakai mausam suhana ho gaya sir :)
जवाब देंहटाएंतार मन-वीणा के, झंकृत हो गये,
जवाब देंहटाएंसुर में सम्भव, गीत गाना हो गया है।
शब्दों का अनूठा तारतम्य
बहुत सुन्दर
तार मन-वीणा के, झंकृत हो गये,सुर में सम्भव, गीत गाना हो गया है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना ।
इन हालातों में वाकई में मौसम सुहाना ही होता है...
जवाब देंहटाएंसुहाने मौसम का सुन्दर गीत !!
जवाब देंहटाएंहाथ लेकर जब चले, तुम साथ में,
जवाब देंहटाएंप्रीत का मौसम, सुहाना हो गया है।
इक नशा सा, जिन्दगी में छा गया,
दर्द-औ-गम, अपना पुराना हो गया है।
वाह! वाह!!
शास्त्री जी क्या बात है!
bahut badhiya rachana..shasrti ji badhai
जवाब देंहटाएंबहुत स्दूंदर रचना .. प्रेम की मस्ती भारी है इसमे शास्त्री जी ..
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