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कहते हैं
जवाब देंहटाएंखरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है
हमने भी रंग बदल लिया है,इसीलिए लिख रहा हूँ कि
खरबूजा खा के ,खरबूजा दिखलाया
शास्त्री जी आपका यह 'कवित्त' बहुत पसंद आया
काश! एक खरबूजा हमें भी खिलवा देते
खैर,कोई बात नहीं,खरबूजा न सही
मेरे ब्लॉग पे आ एक खरबूजानुमा टिपण्णी ही दे देते.
राम-जन्म पर आपको बुलावा है.
मुशायरे में देखा जो
जवाब देंहटाएंखाने हम भी आए
mushayera.blogspot.com
आदरणीय शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
शास्त्रीजी के ठाठ हैं … कभी तरबूज … कभी खरबूजे … :)
प्यारी रचना के लिए साधुवाद !
* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार
मैंने भी कल एक ठेले वाले को खरबूजे बेचते देखा. बहुत मन किया कि खरीदकर अभी खा लूं, लेकिन ऐसा कर नहीं पाया. आपने आज फिर याद दिला दिया. अब तो एक दो दिनों में खाना ही पड़ेगा.
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग भी देखें
भले को भला कहना भी पाप
बहुत सुन्दर रचना…………
जवाब देंहटाएंखरबूजों सी मीठी रचना.
जवाब देंहटाएंवाह ... इस बार खरबूजे ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (16.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
वाह ... इस बार खरबूजे, बहुत खूब .
जवाब देंहटाएंवाह ... इस बार तो खरबूजे देखने को मिला है लेकिन खाने को कब मिलेगा ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंइस बार तो रचना से अधिक आपकी तारीफ करनी पड़ेगी.. बहुत स्मार्ट लग रहे हैं...
जवाब देंहटाएंखरबूजे देखकर गर्मी की आहट आने लगी।
जवाब देंहटाएंखरबूजे देखकर गर्मी की आहट आने लगी।
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