घर-आँगन वो बाग सलोने, याद बहुत आते हैं
बचपन के सब खेल-खिलौने, याद बहुत आते हैं
जब हम गर्मी में की छुट्टी में, रोज नुमाइश जाते थे
इस मेले को दूर-दूर से, लोग देखने आते थे
सर्कस की वो हँसी-ठिठोली, भूल नहीं पाये अब तक
जादू-टोने, जोकर-बौने, याद बहुत आते हैं
बचपन के सब खेल-खिलौने, याद बहुत आते हैं
शादी हो या छठी-जसूठन, मिलकर सभी मनाते थे
आस-पास के लोग प्रेम से, दावत खाने आते थे
अब कितना बदलाव हो गया, अपने रस्म-रिवाजो में
दावत के वो पत्तल-दोने याद बहुत आते हैं
बचपन के सब खेल-खिलौने, याद बहुत आते हैं
कभी-कभी हम जंगल से भी, सूखी लकड़ी लाते थे
उछल-कूद कर वन के प्राणी, निज करतब दिखलाते थे
वानर-हिरन-मोर की बोली, गूँज रही अब तक मन में
जंगल के निश्छल मृग-छौने याद बहुत आते हैं
बचपन के सब खेल-खिलौने, याद बहुत आते हैं
लुका-छिपी और आँख-मिचौली, मन को बहुत लुभाते थे
कुश्ती और कबड्डी में, सब दाँव-पेंच दिखलाते थे
होले भून-भून कर खाते, खेत और खलिहानों में
घर-आँगन के कोने-कोने याद बहुत आते हैं
बचपन के सब खेल-खिलौने, याद बहुत आते हैं
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शनिवार, 27 अगस्त 2016
गीत "बचपन के दिन याद बहुत आते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार !
जवाब देंहटाएंआपकी ये सुंदर कविता बचपन के दिनों की सैर करा लाई,सुंदर सरस भाषा की ये कविता सुंदर लयबद्ध और मन को छूने वाली है,बहुत शुभलामनाएँ आपको।
सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सर बचपन लौटा दिया।
जवाब देंहटाएंसादर
बचपन की सुनहरी यादों को समेटे हुई पंक्तियाँ.....
जवाब देंहटाएंबचपन की यादों को लौटाती सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबचपन तो भुलाए नहीं भूलता
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना | आज आपको बहुत दिन बाद देख कर बहुत अच्छा लग रहा है | कहाँ खो गए थे आप |
जवाब देंहटाएंबचपन के सुंदर पलों की याद समेटे सुंदर कोमल रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर।
बहुत ही सुंदर सृजन! बचपन के दिन बहुत ही खूबसूरत होते हैं!
जवाब देंहटाएं