शोषण और कुपोषण से, खुद बचना और बचाना है।।
गैया-भैंसों का हमको लालन-पालन करना होगा,
अण्डे-मांस छोड़कर, हमको दूध-दही अपनाना है।
शोषण और कुपोषण से, खुद बचना और बचाना है।।
छाछ और लस्सी कलियुग में अमृततुल्य कहाते हैं,
पैप्सी, कोका-कोला को, भारत से हमें भगाना है।
शोषण और कुपोषण से, खुद बचना और बचाना है।।
दाड़िम और अमरूद आदि, फल जीवन देने वाले हैं,
आँगन और बगीचों में, फलवाले पेड़ लगाना है।
शोषण और कुपोषण से, खुद बचना और बचाना है।।
मानवता के हम संवाहक, ऋषियों के हम वंशज हैं,
दुनिया भर को फिर से, शाकाहारी हमें बनाना है।
शोषण और कुपोषण से, खुद बचना और बचाना है।।
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शनिवार, 25 मार्च 2017
"दूध-दही अपनाना है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
सुन्दर सन्देश देता गीत।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar tarike se bataya hai aapne, bahut hi achha laga.
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