कुलदीपक के है लिए, पर्व अहोई खास।
होती अपने तनय पर, माताओं को आस।।
माताएँ इस दिवस पर, करती हैं अरदास।
उनके सुत का हो नहीं, मुखड़ा कभी उदास।।
सन्तानों के लिए है, यह अद्भुत त्यौहार।
बेटा-बेटी में करो, समता का ब्यौहार।।
शिशुओं की किलकारियाँ, गूँजें सबके द्वार।
मिलता बड़े नसीब से, मात-पिता का प्यार।।
घर के बड़े-बुजुर्ग है, जीवन में अनमोल।
मात-पिता के प्यार को, दौलत से मत तोल।।
चाहे कोई वार हो, कोई हो तारीख।
संस्कार देते हमें, कदम-कदम पर सीख।।
जीवन में उल्लास को, भर देते हैं पर्व।
त्यौहारों की रीत पर, हमको होता गर्व।।
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मंगलवार, 30 अक्तूबर 2018
दोहे "अहोई पर्व" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज बुधवार (31-10-2018) को "मंदिर तो बना लें पर दंगों से डर लगता है" (चर्चा अंक-3141) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी