बेवफाई वफा से लड़ने लगी
जब से अपने शहर आवारा हुए
रास्तों में गन्दगी बढ़ने लगी
जब से पच्छिम की चलीं हैं आँधियाँ
गाँव में अश्लीलता सड़ने लगी
मतलबी रिश्ते औ’ नाते हो गये
फूट हर परिवार में पड़ने लगी
जूतियाँ हरजाई जब से हो गयी
पाँव में कीलें बहुत गड़ने लगी
परबतों पर सज रहे हैं मयकदाँ
बेहयाई सीढ़ियाँ चढ़ने लगी
शोर के संगीत में सुर हैं कहाँ
मौशिकी में शायरी मरने लगी
इल्म के उस्ताद बौने हो गये
पाठशाला पाठ खुद पढ़ने लगी
अदब में है 'रूप' की महफिल सजी
आशिकी बौनी ग़ज़ल गढ़ने लगी
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