दिल का नहीं था रिश्ता, कैसी ये दिल्लगी थी।। रिश्तों की गर्मजोशी, मौसम से थीं नदारत, कड़वाहटों से बोझिल, वो शाम नग़मग़ी थी। बेमन से बुलबुलें सब, कुछ गुनगुना रहीं थीं, महफिल में आज उनके, सुर में न ताजग़ी थी। जंगल में राजशाही की हो रही फज़ीहत, हर ओर उल्लओं की, पंचायतें लगीं थी। वानर का “रूप” पाकर, नारद चहक रहा था, दैरो-हरम में बन्दी, लाचार बन्दग़ी थी। |
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bahut khoob,....shastri ji!!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंरिश्तों की गर्मजोशी, मौसम से थीं नदारत,
जवाब देंहटाएंकड़वाहटों से बोझिल, वो शाम नग़मग़ी थी
वाह सर वाह क्या बात है,
जंगल में राजशाही की हो रही फज़ीहत,
जवाब देंहटाएंहर ओर उल्लओं की, पंचायतें लगीं थी।
बेहद खुबसूरत...सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंजंगल में राजशाही की हो रही फज़ीहत,
हर ओर उल्लओं की, पंचायतें लगीं थी।
अब कुछ कहने की जरूरत ही नहीं
बात समझ में आ रही,चाहते क्या कहना
जवाब देंहटाएंआगे पंचायतों से ,सदा बचकर रहना,,,
बेमन से बुलबुलें सब, कुछ गुनगुना रहीं थीं,
जवाब देंहटाएंमहफिल में आज उनके, सुर में न ताजग़ी थी।
जंगल में राजशाही की हो रही फज़ीहत,
हर ओर उल्लओं की, पंचायतें लगीं थी।
गज़ब की प्रस्तुति।
उनकी थी ऐसी फितरत पंचायतें लगाना
जवाब देंहटाएंअपराध तो हुआ है उस खाप में भी जाना
सोचा नहीं था शायद ऐसा सबक मिलेगा
हर एक कदम भी अब तो बस फूंक कर पड़ेगा
बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंवाह.... क्या बात है.
जवाब देंहटाएंआँधी-सी इक चली थी,यूँ धूल उड़ रही थी
जवाब देंहटाएंथी किरकिरी मिठाई, जो प्रेम में पगी थी |
चाहत-वफा के पत्ते , शाखों से झर रहे थे
रिश्तों की गर्म जोशी,हिमखण्ड-सी गली थी |
वाह !!!! शानदार गज़ल
Bahut khoob Shastri Ji.....
जवाब देंहटाएंLajawab gazal hai ...
जंगल में ये अ-मंगल हुआ कैसे ?
जवाब देंहटाएंसारा जहान बे-वफ़ा हुआ कैसे ?
वफादारों की पंचायत में भला,
सियासत का रोग लगा कैसे ?
जंगल में राजशाही की हो रही फज़ीहत,
जवाब देंहटाएंहर ओर उल्लओं की, पंचायतें लगीं थी।
बहुत सही....
वाह मज़ा आ गया।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 03-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-991 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बेहतरीन ,बेहतरीन, बेहतरीन ....
जवाब देंहटाएं:-)
लाजवाब !
जवाब देंहटाएंवैसे पंचायत मैने नहीं बुलवाई थी
मेरे अखबार में खबर भी नहीं आई थी !