सारे झूठी शान में, रहे खुशी से झूम।।
--
जैसे ही होगा खतम, सिप्टम्बर का माह।
उतर जायेगा तब सभी, लोगों का उत्साह।।
--
सुधर जाय
यदि वर्तनी, हिन्दी बने समर्थ।
हिन्दी-हिन्दी
गायकर, गाल बजाना व्यर्थ।।
--
हिन्दी का
अब व्याकरण, नहीं बाँचते लोग।
बात-बात
में कर रहे, हिंग्लिश का उपयोग।।
--
जितनी भी
आयी-गयी, दिल्ली में सरकार।
नहीं किसी
ने भी किया, हिन्दी का उपकार।।
--
सदियों से
चिल्ला रहे, हिन्दी-दिन्दुस्तान।
अब तो वो खुद बन गये, दिल्ली के सुल्तान।।
--
देखेंगे इस
माह भी, उनका हिन्दी प्यार।
हिन्दी
उनसे माँगती, अब अपना अधिकार।।
--
आशाएँ तो
बहुत हैं, मन में हैं अरमान।
भारत की हो
विश्व में, हिन्दी से पहचान।।
--
|
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गुरुवार, 10 सितंबर 2015
दोहे "भारत की हो विश्व में हिन्दी से पहचान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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