हिन्दी भाषा का हुआ, सिर पर भूत सवार।
चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार।।
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सिर्फ दिखावे के लिए, मची हुई है होड़।
हिन्दी-डे पर कर रहे, खर्चा कई करोड़।।
मन से तो करते नहीं, हिन्दी को स्वीकार।
चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार।१।
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गाँधी जी के भक्त ही, काट रहे हैं पेड़।
टोपी-कुर्ते की सिली, बखिया रहे उधेड़।।
हिन्दी की शालाओं का, खिसक रहा आधार।
चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार।२।
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हिन्दी के शिक्षक हुए, समारोह से दूर।
अंग्रेजी के शब्द हैं, भाषण में भरपूर।।
संरक्षण कैसे मिले, भक्षक पालनहार।
चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार।३।
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झूठे हैं दावे सभी, झूठी सारी प्रीत।
लीक पीटने के लिए, निभा रहे हैं रीत।।
अंग्रेजी के सामने, हिन्दी है लाचार।
चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार।४।
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आम आदमी के लिए, ज़ारी हैं फरमान।
नेता सभी विदेश में, पढ़ा रहे सन्तान।।
जनसेवक बिन खौफ के, करते भ्रष्टाचार।
चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार।५।
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शनिवार, 12 सितंबर 2015
दोहागीत "चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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