- "एक पुरानी रचना"निर्दोष से प्रसून भी डरे हुए हैं आज।चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।अश्लीलता के गान नौजवान गा रहा,चोली में छिपे अंग की गाथा सुना रहा,भौंडे सुरों के शोर में, सब दब गये हैं साज।चिड़ियोंकीकारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
श्वान और विडाल जैसा मेल हो रहा,
नग्नता, निलज्जता का खेल हो रहा,
कृष्ण स्वयं द्रोपदी की लूट रहे लाज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
भटकी हुई जवानी है भारत के लाल की,
ऐसी है दुर्दशा मेरे भारत - विशाल की,
आजाद और सुभाष के सपनों पे गिरी गाज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
लिखने को बहुत कुछ है अगर लिखने को आयें,
लिख -कर कठोर सत्य किसे आज सुनायें,
दुनिया में सिर्फ मूर्ख के, सिर पे धरा है ताज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुये हैं बाज।।
रोती पवित्र भूमि, आसमान रो रहा,
लगता है, घोड़े बेच के भगवान सो रहा,
अब तक तो मात्र कोढ़ था, अब हो गयी है खाज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
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शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015
"चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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