![]() श्रद्धा से ही कीजिए, निज पुरुखों को याद।
श्रद्धा ही तो श्राद्ध की, होती है बुनियाद।।
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आदिकाल से चल रही, जग में जग की रीत।
वर्तमान ही बाद में, होता सदा अतीत।।
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जीवन आता है नहीं, जब जाता है रूठ।
जर्जर सूखे पेड़ को, सब कहते हैं ठूठ।।
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जग में आवागमन का, चलता रहता चक्र।
अन्तरिक्ष में ग्रहों की, गति होती है वक्र।।
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वंशबेल चलती रहे, ऐसा वर दो नाथ।
पितरों का तर्पण करो, भक्ति-भाव के साथ।।
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जिनके पुण्य-प्रताप से, रिद्धि-सिद्धि का
वास।
उनका कभी न कीजिए, जीवन में उपहास।।
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जीवित माता-पिता को, मत देना सन्ताप।
पितृपक्ष में कीजिए, वन्दन-पूजा-जाप।।
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अच्छे कामों को करो, सुधरेगा परलोक।
नेकी के ही कर्म से, फैलेगा आलोक।।
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बुरा कभी मत सोचिए, करना मत दुष्कर्म।
सेवा और सहायता, जीवन के हैं मर्म।।
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मंगलवार, 27 सितंबर 2016
दोहे "निज पुरुखों को याद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर दोहे ।
जवाब देंहटाएं"अच्छे कामों को करो, सुधरेगा परलोक।
जवाब देंहटाएंनेकी के ही कर्म से, फैलेगा आलोक।।"
बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .. सच श्रद्धा का नाम ही तो श्राद्ध है
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