चाँद दूज का देखकर, जागी है उम्मीद।
गले मिलें सब प्यार से, कहें मुबारक ईद।।
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मौमिन को सन्देश ये, देते हैं रमजान।
नेकी और खुलूस का, मौला का फरमान।।
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जर्रे-जर्रे में बसा, राम और रहमान।
सिखलाते इंसानियत, पूजा और अजान।।
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मर्म बताते धर्म का, गीता और कुरान।
सारे प्राणी धरा के, ईश्वर की सन्तान।।
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खुद जिसके आदेश पर, चलता सकल जहान।
बन्धन में रहता नहीं, खुदा और भगवान।।
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सारी पोथी धर्म की, करती हैं ताक़ीद।
जिसके मन में प्यार है, उसके सभी मुरीद।।
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दुनिया के बाजार में, सौदा खरा खरीद।
लाते हैं उल्लास को, होली-क्रिसमस-ईद।।
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मज़हब चाहे कोई हो, करना सबका मान।
भाईचारे से बने, अपना देश महान।।
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चाहे कुछ भी नाम दो, देश-काल अनुरूप।
मक़सद केवल एक है, अलग-अलग हैं “रूप”।।
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रविवार, 25 जून 2017
दोहे "कहो मुबारक ईद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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