कब बरसेंगे बादल काले
घाम जलाता है तन-मन को
जून सताता है जन-जन को
पड़े हुए पानी के लाले
कब बरसेंगे बादल काले
आसमान से आग बरसती
गर्मी से है धरती तपती
सूरज के तेवर मतवाले
कब बरसेंगे बादल काले
कातर सुर में व्यथा सुनाते
दादुर टर्र-टर्र चिल्लाते
सूख गये हैं नदिया नाले
कब बरसेंगे बादल काले
फेल हो गये एसी-कूलर
आज हो गया पागल रविकर
धीरज खोते हिम्मतवाले
कब बरसेंगे बादल काले
मलयानिल से भरे हिमालय
भक्त सभी जाते देवालय
विद्यालय में लटके ताले
कब बरसेंगे बादल काले
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बुधवार, 7 जून 2017
गीत "कब बरसेंगे बादल काले" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर. सामयिक रचना
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