-- हिन्दी पर दुगनी पड़ी, महँगाई की मार। जीवन के हर मोड़ पर, हिन्दी की है हार।। -- महानगर की रेल में, लिखा हुआ सन्देश। महँगा है अब देश में, हिन्दी का परिवेश।। -- करते नौकरशाह हैं, हिंग्लिश से ही प्यार। हिन्दी से सब कर रहे, सौतेला व्यवहार।। -- आये कोई भी यहाँ, दल-दल की सरकार। हिन्दी का बेड़ा नहीं, कर पायेगी पार।। -- मन में अंग्रेजी भरी, मुख पर हिन्दी नाम। हिन्दी में सरकार का, नहीं चल रहा काम।। -- मुखर हुआ है इण्डिया, भारत है अब मौन। बात करेगा जगत में, हिन्दी की अब कौन।। -- कहनेभर को ही बचा, हिन्दी-हिन्दुस्तान। अंग्रेजी परिवेश की, चलती खूब दुकान।। -- मास सितम्बर में करें, हिन्दी का गुणगान। बाकी ग्यारह मास सब, सोते चादर तान।। -- गाँधी ने रक्खा सदा, हिन्दी से अनुराग। मोदी हिन्दी का करो, रौशन यहाँ चिराग।। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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रविवार, 15 सितंबर 2024
दोहे "हिन्दी से अनुराग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शनिवार, 14 सितंबर 2024
चौदह दोहे "अपनी हिन्दी नागरी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- एक साल में एक दिन, हिन्दी का उद्घोष। हिन्दी वालो सोचिये, किसका है यह दोष।१। -- हिन्दी भाषा के लिए, कैसी है ये सोच। बोल-चाल में भी हमें, हिंग्लिश रही दबोच।२। -- कहनेभर से तो नहीं, होगा देश महान। सब बेमन से कर रहे, हिन्दी का गुणगान।३। -- अँग्रेजी के रंग में, रँगे हुए गुणवन्त। भाषण में भी बोलते, इंग्लिश सन्त-महन्त।४। -- हिन्दी का ये देश अब, लगता इंग्लिस्थान। देवनागरी का यहाँ, कैसे हो उत्थान।६। -- हिन्दी का दिन बन गया, हिन्दी-डे ही आज। गोरों के पदचिह्न पर, अब चल पड़ा समाज।६। -- भाषा का शव ढो रहे, सन्त-महन्त-फकीर। देवनागरी के पड़ी, पाँवों में जंजीर।७। -- नहीं राष्ट्रभाषा बनी, शोचनीय है बात। नौकरशाही कर रही, पग-पग पर उत्पात।८। -- हिन्दी-हिन्दुस्तान था, जिस दल का आधार। अब कठिनाई कौन सी, उनकी है सरकार।९। -- तोड़ दीजिए सब मिथक, हिन्दी करे पुकार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।१०। -- ओ काशी के सांसद, संसद के शिरमौर। हिन्दी के अपमान का, बन्द करो अब दौर।११। -- दशकों से जो सह रही, अपनों के ही दंश। अब हिन्दी का देश में, पोषित कर दो वंश।१२। -- जिस भाषा में माँगते, सबसे मत का दान। अब होना ही चाहिए, हिन्दी का सम्मान।१३। -- देवनागरी में लिखे, गीता-वेद पुराण। अपनी हिन्दी नागरी, भारत माँ का प्राण।१४। -- |
शुक्रवार, 13 सितंबर 2024
जन्मदिन "मेरे ज्येष्ठ पुत्र का जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मित्रों! आज मेरे ज्येष्ठ पुत्र नितिन का जन्मदिन है। अपनी शुभकामनाओं के साथ मैं नितिन के कुछ दुर्लभ चित्र प्रस्तुत कर रहा हूँ। -- जीवन के क्रीड़ांगन में, तुम रहो विजेता। जन्मदिवस की बेला पर, आशीष तुम्हें मैं देता। -- आदर्शों की नींव हमेशा, अपने बच्चों में डालो। जैसे मैंने पाला तुमको, वैसे ही तुम भी पालो।। -- जीवनसाथी के संग में तुम, वाद-विवाद न पनपाना। आदर्शो की बेल हमेशा, घर-आँगन में उपजाना।। -- दादा-दादी, मात-पिता की सेवा करना मन से। कभी अनुज को अलग न करना, बेटा अपने जीवन से।। -- सच्चाई के साथ हमेशा निष्ठा से तुम काम करो। लम्बा जीवन जियो, और दुनिया में अपना नाम करो।। -- |
गुरुवार, 12 सितंबर 2024
गीत "दोनों पलकें बोझिल हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भरत-भूमि में हिन्दी की, आशाएँ लगती धूमिल हैं। हिन्दी की बरबादी में, खुद हिन्दी वाले शामिल हैं।। राहों में काँटे बिखरे हैं, कैसे अपनी मंजिल पायें। वेदनाओं का ज्वार प्रबल है, कैसे अपने गीत सुनायें। स्वस्थ हास-परिहास नहीं है, मक्कारों की महफिल हैं। हिन्दी की बरबादी में, खुद हिन्दी वाले शामिल हैं।। सूख गये हैं सुधा सिन्धु अब, हार गये हैं भाषा साधक। लुप्त हो गयी आज व्याकरण, भंग हो गये सारे मानक। हिन्दी का पथ नहीं सरल है। शब्द मौन हैं, भाव सुप्त हैं, दोनों पलकें बोझिल हैं। हिन्दी की बरबादी में, खुद हिन्दी वाले शामिल हैं।। छूट गयी पतवार हाथ से, कैसे होगा पार सरोवर? बिना कर्म के कैसे चमके, अपना फूटा आज मुकद्दर। हिन्दी वाले ही हिन्दी के लगते अब तो कातिल हैं। हिन्दी की बरबादी में, खुद हिन्दी वाले शामिल हैं।। युग बदला जीवन भी बदला, बदल गया परिवेश हमारा। किन्तु नहीं अब तक भी बदला, दकियानूसी देश हमारा। आज हमारी हिन्दी में क्यों नुक्ता-चीनी दाखिल हैं। हिन्दी की बरबादी में, खुद हिन्दी वाले शामिल हैं।। |
बुधवार, 11 सितंबर 2024
दोहागीत "भाषा करे पुकार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
तोड़ दीजिए मिथक सब, भाषा करे पुकार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।। -- ओ काशी के सांसद, संसद के शिरमौर। विदा करो अब देश से, अँगरेजी का दौर।। है कठिनाई कौन सी, क्यों हो अब लाचार। पूरे बहुमत की मिली, तुमको है सरकार।। हिन्दी-हिन्दुस्थान हो, जिस दल का आधार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।१। -- कहनेभर से तो नहीं, होगा देश महान। बेमन से मत कीजिए, हिन्दी का गुणगान।। दशकों से जो सह रही, अपनों के ही दंश। पोषित कर दो देश में, अब हिन्दी का वंश।। अब तो है इस देश में, भगवा की सरकार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।२। -- हिन्दी भाषा के लिए, बदलो अपनी सोच। बोल-चाल में क्यों हमें, हिंग्लिश रही दबोच।। निष्ठा से जब तक नहीं, होगा कोई काम। कैसे तब तक देश का, होगा जग में नाम।। अपनी भाषा का करो, दुनिया में विस्तार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।३। -- हिन्दी के सेवक कहाँ, राजनीति के सन्त। अँगरेजी के रंग में, रँगे हुए गुणवन्त।। हिन्दी भाषा का भला, कैसे हो उत्थान। अमरीका-इंग्लैण्ड सा, लगता हिन्दुस्तान।। देवनागरी पर करे, इंगलिश ससत् प्रहार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।४। -- हिन्दी का जब कर रहे, अपने लोग अनर्थ। निजभाषा तब देश में, कैसे बने समर्थ।। करते नौकरशाह हैं, हिन्दी पर आघात। हिन्दीजन संघर्षरत, नित्य खा रहे मात।। जनसेवक भी कर रहे, शब्दों का व्यापार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।५। -- हिन्दी का दिन बन गया, बस हिन्दी-डे आज। गोरों के पदचिह्न पर, अब चल पड़ा समाज।। जिस भाषा में माँगते, सबसे मत का दान। उस भाषा का चाहिए, होना अब सम्मान।। किन्तु सितम्बर मास तक, हिन्दी की जयकार। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।६। -- देवनागरी में लिखे, गीता-वेद-पुराण। अपनी हिन्दी नागरी, भारत माँ का प्राण।। जिसके पुण्य-प्रताप से, देश हुआ स्वाधीन। फिर किस कारण से हुई, अपनी हिन्दी क्षीण।। हिन्दी है सबसे सरल, कहता है संसार।। हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।७। -- |
मंगलवार, 10 सितंबर 2024
ग़ज़ल "बरसात अचानक होती है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
गीतिका -- बिन बादल बरसात अचानक
होती है आँखों की बरसात भयानक
होती है -- दिलवालों की दुनिया बड़ी
निराली है उनकी हर सौगात निदानक
होती है -- बात बुजुर्गों की मानो
हर हालत में उनकी तो हर बात विधानक
होती है -- बुरा कभी मत बोलो चहके
गुलशन में गाली की बारात अमानक
होती है -- रूप अनछुआ ही कलियों का
रहने दो फूलों की औकात समानक
होती है -- |
सोमवार, 9 सितंबर 2024
ग़ज़ल "ढलती उमर में जवानी नहीं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- जो
गई है गुजर फिर वो आनी नहीं यह
हकीकत है कोई कहानी नहीं -- चाट
लो चाहे ताकत की चटनी भले चढ़ती
ढलती उमर में जवानी नहीं -- चार
दिन का है मौसम बहारों भरा खिलती
कलियाँ हमेशा सुहानी नहीं -- पालना
पौध को काम मुश्किल बड़ा सबको
आती यहाँ बागवानी नहीं -- मैं
जईफी की किससे कहूँ दास्तां जिन्दगी
की बची अब निशानी नहीं -- सूखकर
है बदन आज काँटा हुआ बहता
दरिया में हर रोज पानी नहीं -- रूप
रहता नहीं है सलामत कभी अब
रवानी रही खानदानी नहीं -- |
रविवार, 8 सितंबर 2024
ग़ज़ल "सावन की झड़ी वो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- खुशी
की आ गयी अब तो घड़ी वो महकने
लग गयी जब से लड़ी वो -- गुजरने
लग गये दिन अब खुशी से सफर
में जुड़ गयी जब से कड़ी वो -- भरी
बरसात में जब हम मिले थे मुझे
है याद सावन की झड़ी वो -- हमारे
प्यार की देती गवाही महल
से कम नहीं थी झोंपड़ी वो -- रूप
का पानी जहाँ हमने पिया था अभी
सूखी नहीं है बावड़ी वो -- |
शनिवार, 7 सितंबर 2024
दोहे "श्री गणेश चतुर्थी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
श्री गणेश चतुर्थी -- आदिदेव के नाम से, करना सब शुभ-कार्य। गणपति की पूजा करो, कहते धर्माचार्य।। -- भर देता नवऊर्जा, चतुर्दशी का पर्व। गणपति के त्यौहार पर, भक्तों को है गर्व।। हुआ चतुर्थी से शुरू, गणपति जी का पर्व। हर्षित होते दस दिवस, सुर-नर, मुनि गन्धर्व।। वन्दन-पूजन से किया, सबने विदा गणेश। विघ्नविनाशक आप ही, सबके हो प्राणेश।। बाधाओं का शमन हो, मिट जायेंगे रोग। मोदक से विध्नेश को, आप लगायें भोग।। रमा और माँ शारदे, रहें आपके साथ। रखना मेरे शीश पर, गणनायक जी हाथ।। मूषक ढोता आपका, भारी-भरकम भार। गणपति मेरे सदन में, आओ बारम्बार।। |
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