जीवन के संग्राम में, किया बहुत संघर्ष। वैवाहिक जीवन हुआ, अब इक्यावन वर्ष।1। सजनी घर के काम में, बँटा रही है हाथ। चैन-अमन से कट रहा, जीवन उसके साथ।2। धीरे-धीरे कट गये, ये इक्यावन साल। ताल-मेल के साथ में, जीवन है खुशहाल।3। उबड़-खाबड़ राह से, कभी न मानी हार। मजबूती से नाव की, थामी है पतवार।4। होते रहते हैं कभी, आपस में मतभेद। हम दोनों नहीं, रखते हैं मनभेद।5। धीरे-धीरे कट रहे, दिवस-महीने-साल। जीवन के हल हो गये, सारे कठिन सवाल।6। जीवन कटता जा रहा, ताल-मेल के साथ। सुख-दुख दोनों में रहे, मिले हमारे हाथ।7। विनती करता हूँ यही, कृपा करो हे राम। आगे भी चलता रहे, ऐसे ही सब काम।8। |
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गुरुवार, 5 दिसंबर 2024
दोहे "धीरे-धीरे कट गये, ये इक्यावन साल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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