वक्त
गुजरा जिन्दगी का, अब
बुढ़ापा आ गया है। आस
की पतवार लेकर, जन्मदिन
फिर आ गया है।। जन्मदिन
के जश्न का, संयोग
कितना अटपटा है, साल
इक मेरी उम्र का, आज
जीवन से घटा है, रूप
की इस धूप पर अब, घन
घटा बन छा गया है। आस
की पतवार लेकर, जन्मदिन
फिर आ गया है।1। जिन्दगी
है जेल लेकिन, खूब
मुझको भा रही है, वाटिका
परिवार की, अब
रास मुझको आ रही है, छत्र-छाया
को सलोनी रूप
लेकर छा गया है। आस
की पतवार लेकर, जन्मदिन
फिर आ गया है।2। रौशनी
के कण लुटाता हूँ, अभी
खद्योत बनकर, पार
भवसागर करूँगा, मैं
सबल जलपोत बनकर, कर्म
फल को भुगतने का, समय
मेरा आ गया है। आस
की पतवार लेकर, जन्मदिन
फिर आ गया है।3। जिन्दगी
की डोर को, जगदीश
मेरी थामना, स्वस्थ
रहते प्राण निकले, बस
यही है कामना, चाहता
जो प्राण मेरा, वह
परमपद पा गया है। आस
की पतवार लेकर, जन्मदिन
फिर आ गया है।4। |
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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025
जन्मदिन गीत "जन्मदिन फिर आ गया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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