बिना
किसी सम्बन्ध के, भावों का संचार।
अनुभव
करते हृदय से, आभासी संसार।।
--
होता
अन्तर्जाल पर, दूर-दूर से प्यार।
अच्छा
लगता है बहुत, आभासी संसार।।
--
बिना
किसी हथियार के, करते हैं सब वार।
होता बिल्कुल मुक्त है, आभासी
संसार।।
--
बिना
किसी आकार के, लगता जो साकार।
सपनों
में सबके बसे, आभासी संसार।।
--
बिन
माँगे मिलते जहाँ, बार-बार उपहार।
अपनापन
है बाँटता, आभासी संसार।।
--
साझा
करते हैं जहाँ, अपने सभी विचार।
टिप्पणियाँ
स्वीकारता, आभासी संसार।।
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लिए
अधूरे ज्ञान को, भरते सब हुंकार।
भरा
हुआ है दम्भ से, आभासी संसार।।
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कवियों
के तो नाम की, लम्बी लगी कतार।
छन्दों
को है लीलता, आभासी संसार।।
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माली
ही खुद लूटते, अब तो बाग-बहार।
आपाधापी
का हुआ, आभासी संसार।।
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सत्य
बताने के लिए, “रूप” हुआ लाचार।
नौसिखियों
के सामने, सर्जक हैं बेकार।।
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मंगलवार, 31 मई 2016
दोहे "आभासी संसार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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