बिना किसी हथियार के, करते
हैं सब वार।
देखो कितना मुक्त है, आभासी संसार।।
--
बिना किसी आकार के, लगता
जो साकार।
सपनों में सबके बसे, आभासी
संसार।।
--
बिना किसी सम्बन्ध के, भावों
का संचार।
अनुभव करते हृदय से, आभासी
संसार।।
--
होता अन्तर्जाल पर, दूर-दूर
से प्यार।
अच्छा लगता है बहुत, आभासी
संसार।।
--
बिन माँगे मिलते जहाँ, बार-बार
उपहार।
अपनापन है बाँटता, आभासी
संसार।।
--
साझा करते हैं जहाँ, अपने
सभी विचार।
टिप्पणियाँ स्वीकारता, आभासी
संसार।।
--
लिए अधूरे ज्ञान को, भरते
सब हुंकार।
भरा हुआ है दम्भ से, आभासी
संसार।।
--
कवियों के तो नाम की, लम्बी
लगी कतार।
छन्दों को है लीलता, आभासी
संसार।।
--
माली हों जब लूटते, अपनी
स्वयं बहार।
आपाधापी का हुआ, आभासी
संसार।।
--
सत्य बताने के लिए, “रूप” हुआ लाचार।
नौसिखियों के सामने, सर्जक
हैं बेकार।।
--
|
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सोमवार, 7 अक्तूबर 2019
दोहे "आभासी संसार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत शानदार हर बार की तरह ।
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