पहले पाबन्दियाँ थीं हँसने में,
अब तो रोने में भी लगे पहरे।
पहले बदनामियाँ थीं कहने में,
अब तो सहने में भी लगे पहरे।
कितने पैबन्द हैं लिबासों में,
जिन्दगी बन्द चन्द साँसों मे,
पहले हदबन्दियाँ थीं चलने में,
अब ठहरने में भी लगे पहरे।
शूल बिखरे हुए हैं राहों मे,
नेक-नीयत नहीं निगाहों में
पहले थीं खामियाँ सँवरने में,
अब उजड़ने में भी लगे पहरे।
अब हवाएँ जहर उगलतीं हैं,
अब फिजाएँ कहर उगलतीं हैं,
पहले गुटबन्दियाँ थीं कुनबे में,
अब तो मिलनें में भी लगे पहरे।
शूल बिखरे हुए हैं राहों मे,
जवाब देंहटाएंनेक-नीयत नहीं निगाहों में
पहले थीं खामियाँ सँवरने में,
अब उजड़ने में भी लगे पहरे।
बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ....बेहतरीन रचना....
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंअब हवाएँ जहर उगलतीं हैं,
जवाब देंहटाएंअब फिजाएँ कहर उगलतीं हैं,
पहले गुटबन्दियाँ थीं कुनबे में,
अब तो मिलनें में भी लगे पहरे।
बहुत सुन्दर रचना सर . बिलकुल सामयिक है . आभार
अब हवाएँ जहर उगलतीं हैं,
जवाब देंहटाएंअब फिजाएँ कहर उगलतीं हैं,
पहले गुटबन्दियाँ थीं कुनबे में,
अब तो मिलनें में भी लगे पहरे।
सच्चाई की रोशनी दिखाती आपकी बात हक़ीक़त बयान करती है।
पहले गुटबन्दियाँ थीं कुनबे में,
जवाब देंहटाएंअब तो मिलनें में भी लगे पहरे।
यथार्थ को दर्शाती रचना।
nice
जवाब देंहटाएंbahut sundar........
जवाब देंहटाएंbahut hi pyaari rachnaa
abhinandan !
"पहले थीं खामियाँ सँवरने में,
जवाब देंहटाएंअब उजड़ने में भी लगे पहरे"।
oh! ye kaisa daur he?
शूल बिखरे हुए हैं राहों मे,
जवाब देंहटाएंनेक-नीयत नहीं निगाहों में
पहले थीं खामियाँ सँवरने में,
अब उजड़ने में भी लगे पहरे....
बहुत लाजवाब शास्त्री जी ..... कमाल का लिखा है आपने ........ आज का चित्रण .....
बदलते परिवेश को दर्शाती रचना
जवाब देंहटाएंकितने पैबन्द हैं लिबासों में,
जवाब देंहटाएंजिन्दगी बन्द चन्द साँसों मे,
पहले हदबन्दियाँ थीं चलने में,
अब ठहरने में भी लगे पहरे।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ..बेहतरीन अभिव्यक्ति
सुन्दर रचना हमेशा की तरह.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भाव। बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएं------------------
ये तो बहुत ही आसान पहेली है?
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।
पहले गुटबन्दियाँ थीं कुनबे में,
जवाब देंहटाएंअब तो मिलनें में भी लगे पहरे।
-कितना सच!!!
बहुत ही शानदार सटीक विश्लेषण आज के दौर का ।
जवाब देंहटाएंसच्चाई को कहती उत्कृष्ट रचना
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (07-06-2021 ) को 'शूल बिखरे हुए हैं राहों में' (चर्चा अंक 4089) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
शूल बिखरे हुए हैं राहों मे,
जवाब देंहटाएंनेक-नीयत नहीं निगाहों में
पहले थीं खामियाँ सँवरने में,
अब उजड़ने में भी लगे पहरे।
बेहतरीन रचना आदरणीय 👌
पहले पाबन्दियाँ थीं हँसने में,
जवाब देंहटाएंअब तो रोने में भी लगे पहरे।
पहले बदनामियाँ थीं कहने में,
अब तो सहने में भी लगे पहरे।
बहुत सटीक और सुंदर रचना आदरणीय 🙏
बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंजबरदस्त रचना... हार्दिक बधाई आ.मयंक जी!
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