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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009
"विपत्ति जब सताती है, नमन शैतान करते है।" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
Mayank ji, Chhand ke bahane bahut sundar baat kah dee aapne.
जवाब देंहटाएंBadhaayee.
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सलीम खान का हृदय परिवर्तन हो चुका है।
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
सुबह और शाम को मच्छर सदा गुणगान करते हैं,
जवाब देंहटाएंजगत के उस नियन्ता को, सदा प्रणाम करते हैं।
मगर इन्सान है खुदगर्ज कितना आज के युग में ,
विपत्ति जब सताती है, नमन शैतान करते है।।
बहुत खूब शास्त्री जी !
दिया है दुःख का बादल, तो उसने ही दवा दी है,
जवाब देंहटाएंकुहासे को मिटाने को, उसी ने तो हवा दी है।
- यही आस्था भारत की आत्मा है.
कभी-कभी लगता है कि ऊपर बैठा वह भी अपने बच्चों से खिलवाड़ करता रहता है।
जवाब देंहटाएंkamaal
जवाब देंहटाएंkamaal
kamaal
______prabhu ki badi kripa hai
bahut hi uttam rachna
abhinandan !
शास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद आपका ब्लॉग खुल सका है और मैं आपकी कविता पढ़ पा रहा हूँ ! इस बीच के वक़्त की कई कवितायें मेरी पकड़ से छूट गईं.
'अमावस को मिटाने को, दियों में रोशनी भर दी।।'
खुदगर्ज़ इंसान और शैतान तो विपदा पड़े तभी नम्र हो पाटा है. आपकी इस कविता में युगसत्य मुखर हुआ है !
सादर--आनंद.
Ati uttam rachna.
जवाब देंहटाएंदिया है दुःख का बादल, तो उसने ही दवा दी है,
जवाब देंहटाएंकुहासे को मिटाने को, उसी ने तो हवा दी है।
जो रहते जंगलों में, भीगते बारिश के पानी में,
उन्ही के वास्ते झाड़ी मे कुटिया सी छवा दी है।।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ.... बेह्तारें अभिव्यक्ति के साथ .....सुंदर प्रस्तुति.....
सुबह और शाम को मच्छर सदा गुणगान करते हैं,
जवाब देंहटाएंजगत के उस नियन्ता को, सदा प्रणाम करते हैं।
मगर इन्सान है खुदगर्ज कितना आज के युग में ,
विपत्ति जब सताती है, नमन शैतान करते है।।
बहुत कड़वा यथार्थ बयान किया है आपने ---शुभकामनायें।
पूनम
बहुत ही सार्थक और सामयिक रचना---हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंहेमन्त कुमार
मगर इन्सान है खुदगर्ज कितना आज के युग में ,
जवाब देंहटाएंविपत्ति जब सताती है, नमन शैतान करते है।।
-शानदार यथार्थ...
मन से न सही
जवाब देंहटाएंमुंह से आवाज
तो करते हैं।
gyan diya jisne ,pran bhare jisne
जवाब देंहटाएंhum bhi usi ko naman karte hain
ek bahut hi sukhdayi aur prerak rachna.
बहाई ज्ञान की गंगा, मधुरता ईख में कर दी,
जवाब देंहटाएंकभी गर्मी, कभी वर्षा, कभी कम्पन भरी सरदी।
किया है रात को रोशन, दिये हैं चाँद और तारे,
अमावस को मिटाने को, दियों में रोशनी भर दी।।
बहुत खूब ......... बहुत ही लय में और गीत की तरह गुनगुनाए जा सकती है आपकी ये लाजवाब रचना ..... अनुपम कृति .....
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (24-05-2021 ) को 'दिया है दुःख का बादल, तो उसने ही दवा दी है' (चर्चा अंक 4075) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंहम नादान उस परम पिता का न तो सुख में सिमरन करते हैं और न ही दुःख में !
बहुत सुंदर सृजन आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंसुंदर व्यजंनाएं सुंदर मनोभाव।
सार्थक रचना। प्रशंसनीय।
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