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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009
"अचरज में है हिन्दुस्तान!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
खादी और खाकी दोनों में बसते हैं शैतान।अचरज में है हिन्दुस्तान! अचरज में है हिन्दुस्तान!!
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha..........jo bhi insaan hai wo achraj mein hai.........bahut hi satik.
बहुत सुंदर और सटीक कविता....
जवाब देंहटाएंखुले साँड संसद में चरते, करते हैं मक्कारी,
जवाब देंहटाएंबेकसूर थानों में मरते, जनता है दुखियारी,
कितना शानदार नारा है, भारत बहुत महान!
अचरज में है हिन्दुस्तान! अचरज में है हिन्दुस्तान!!
हा-हा-हा, दिल की बात ! बहुत सुन्दर !
कडुवी सच्चाई यही है.
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी, खादी तो ठीक है क्योंकि वह सार्वभौमिक सर्वदलीय, सार्वजनिक है; परन्तु आपका खाकी प्रयोग निज़ी -लिप्तता व वर्ग विशेष के प्रति अरुचि दर्शाता है जिससे कवि- साहित्यकार को बचना चाहिये क्योंकि वह,एक प्रज़ातन्त्र, भारत देश की जनता के एक वर्ग का प्रतिनिधि है, और आप जनता के एक वर्ग को शैतान नहीं कहसकते चाहे वह आपके विपरीत विचारों वाला क्यों न हो ।
जवाब देंहटाएंहालांकि खादी वाले भी आपके ही भेजे हुए हैं, आपके प्रतिनिधि। दूसरे को गाली देने की स्वयम अपने आप में न दखने की हमे आदत पड गई है, -पर उपदेश कुशल बहुतेरे’। आखिर आप किसे शैतान कहरहे हैं ---सोचें । कुछ सार्थक समाधान पूर्ण रचना करें- भेड-चाल नहीं।
रचना अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंडॉ.श्याम जी!
जवाब देंहटाएंआपकी बात को गलत तो नही कह सकता हूँ, क्योंकि मेरे भी परिवार से खादी और खाकी वाले बहुत हैं।
लेकिन जब एक मछली तालाब को गन्दा कर सकती है तो जहाँ 99.99 प्रतिशत मछलियाँ गन्दी हैं तो आप क्या कहेंगे?
यदि आप आदेश करें तो अभिव्यक्ति की आजादी छोड़कर जबान मं ताला डाल कर बैठ जाऊँ?
AAPSE POORNA SAHMAT.......
जवाब देंहटाएंLAJAWAAB RACHNA.........
BADHAAI !
आइना दिखा रही है ये रचना दोनों को
जवाब देंहटाएंअबलाओं की लज्जा लुटती सरकारी थानों में,
जवाब देंहटाएंयही तो बिडम्बना है
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (22-05-2021 ) को 'कोई रोटियों से खेलने चला है' (चर्चा अंक 4073) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
खुले साँड संसद में चरते, करते हैं मक्कारी,
जवाब देंहटाएंबेकसूर थानों में मरते, जनता है दुखियारी,
कितना शानदार नारा है, भारत बहुत महान!
अचरज में है हिन्दुस्तान! अचरज में है हिन्दुस्तान!!
एकदम सही बात कही है आपने
सत्य पर केन्द्रित सरहानीय रचना
आज भी यह रचना कितनी प्रासंगिक है
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और बहुत सामयिक
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