जिन्दगी हमारे, लिए आज भार हो गई! मनुजता की चूनरी, तो तार-तार हो गई!! हादसे सबल हुए हैं गाँव-गली-राह में, खून से सनी हुई छुरी छिपी हैं बाँह में, मौत जिन्दगी की, रेल में सवार हो गई! मनुजता की चूनरी, तो तार-तार हो गई!! चीत्कार, काँव-काँव, छल रहे हैं धूप छाँव, आदमी के ठाँव-ठाँव, चल रहे हैं पेंच-दाँव, सभ्यता के हाथ, सभ्यता शिकार हो गई! मनुजता की चूनरी, तो तार-तार हो गई!! |
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सोमवार, 19 अप्रैल 2010
“तार-तार हो गई!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंitni achi kavita par ham bhi majbur ho jate he comments ke liye
shekar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/\
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंJI BADHIYA LAGI....
जवाब देंहटाएंkunwar ji,
बहुत खूबसूरत गीत.....संवेदनाओं से भरी हुई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया. बिल्कुल नीरज जी के गीत की तर्ज पर गुनगुनाया, बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंहादसे सबल हुए हैं
जवाब देंहटाएंगाँव-गली-राह में,
खून से सनी हुई
छुरी छिपी हैं बाँह में,
मौत जिन्दगी की,
रेल में सवार हो गई!
मनुजता की चूनरी,
तो तार-तार हो गई
खूबसूरत गीत ... नीरज के गीत की याद आ गयी ...
"कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे .."
आज मनुजता
जवाब देंहटाएंहैवानियत की
शिकार हो गयी
इन्सानियत भी
इन्सानियत पर
भार हो गयी
शायद इसीलिये
मनुजता की चुनरी
तार- तार हो गयी।
हादसे सबल हुए हैं
जवाब देंहटाएंगाँव-गली-राह में,
खून से सनी हुई
छुरी छिपी हैं बाँह में,
मौत जिन्दगी की,
रेल में सवार हो गई!
मनुजता की चूनरी,
तो तार-तार हो गई!!
बेहतरीन !
बहुत ही सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सभ्यता के हाथ,
जवाब देंहटाएंसभ्यता शिकार हो गई!
मनुजता की चूनरी,
तो तार-तार हो गई!!
बहुत अच्छी बहुत कोमल रचना
मौत जिन्दगी की,
जवाब देंहटाएंरेल में सवार हो गई!
मनुजता की चूनरी,
तो तार-तार हो गई!!
lajawab!
nice
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गीत! बधाई!
जवाब देंहटाएंpar ye taar taar hui kyon..
जवाब देंहटाएंआतंकवाद की सच्चाई को
जवाब देंहटाएंउजागर करता हुआ
बहुत बढ़िया नवगीत!
बहुत भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और भावपूर्ण गीत.
जवाब देंहटाएंरामराम.
खूबसूरत गीत...
जवाब देंहटाएंkhoobsoorat!
जवाब देंहटाएंसच मुच गीत जीने का प्रमुख साधन होते हैं
जवाब देंहटाएंआज के हालातों का दर्पण सा लगा.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा गीत है.
वाह वाह !!!
जवाब देंहटाएंकितनी सहजता से सत्य को सत्यापित कर गयी यह कविता..
सचमुच बहुत ही अच्छी लगी....
आपकी लेखनी पर सरस्वती जी की विशेष कृपा हैं...
आभार....
" bahut hi acchi rachana "
जवाब देंहटाएं----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
मनुजता की चुनरी तो मनुष्य ही तार तार कर रहे हैं ! बहुत सुन्दर रचना है !
जवाब देंहटाएंसभ्यता के हाथ सभ्यता शिकार हो गयी ...
जवाब देंहटाएंगली गली गाँव गाँव यही दृश्य हैं ...यथार्थ बोधक कविता ...!!
मौत जिन्दगी की रेल में सवार हो गयी। यह अच्छा प्रयोग है। बधाई।
जवाब देंहटाएं