अब ध्ररा पर ज्ञान की गंगा बहाओ,
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बुधवार, 24 नवंबर 2010
"तान वीणा की सुनाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
अब ध्ररा पर ज्ञान की गंगा बहाओ,
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यही है हम सबकी सम्मिलित आराधना।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रार्थना .
जवाब देंहटाएंयही है हम सबकी सम्मिलित आराधना।
जवाब देंहटाएंवन्दना है आपसे, रसना में रस की धार दो,
जवाब देंहटाएंहम निपट अज्ञानियों को मातु निज आधार दो,
माँ हमें वरदान दो, होवें सफल सब साधना।
माँ करो स्वीकार सुमनों की प्रबल आराधना।।
बेहद भावप्रवण दिल से की गयी आराधना।
मन को छूती बेहद सुंदर प्रार्थना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
हम भी यही प्रार्थना करते हैं..
जवाब देंहटाएंमाँ करो स्वीकार सुमनों की प्रबल आराधना।।
जवाब देंहटाएंहम सबकी भी है ये ही प्रार्थना ... बहुत खूबसूरत रचना...
बहुत ही सुंदर रचना. प्रणाम.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुन्दर सरस्वती वंदना ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत स्तुति ....
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत .......... सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमाँ शारदे की सुन्दर प्रार्थना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंवन्दना है आपसे, रसना में रस की धार दो,
जवाब देंहटाएंहम निपट अज्ञानियों को मातु निज आधार दो,
माँ हमें वरदान दो, होवें सफल सब साधना।
माँ करो स्वीकार सुमनों की प्रबल आराधना।।
बहुत सुंदर खूबसूरत प्रार्थना !
प्रार्थना अत्यंत सुन्दर है!
जवाब देंहटाएंजय माँ शारदे!