(1)
जीवन में तम को हरने को, चिंगारी आ जाती है।
घर को आलोकित करने को, बहुत जरूरी बाती है।
होली की ज्वाला हो चाहे, तम से भरी अमावस हो-
हवनकुण्ड में ज्वाला बन, बाती कर्तव्य निभाती है।
(2)
हम दधिचि के वंशज हैं, ऋषियों की हम सन्ताने हैं।
मातृभूमि की शम्मा पर, आहुति देते परवाने हैं।
दुनियावालों भूल न करना, कायर हमें समझने की-
उग्रवाद-आतंकवाद से, डरते नहीं दीवाने हैं।
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मंगलवार, 14 मई 2013
"ऋषियों की हम सन्ताने हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
बहुत अच्छी प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंLatest post हे ! भारत के मातायों
latest postअनुभूति : क्षणिकाएं
सुन्दर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है आपने .आभार .
जवाब देंहटाएंbehatareen aur bebak prastuti,
जवाब देंहटाएंत्याग, तपस्या अपने अन्दर बहता अब भी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
sundar prastuti
जवाब देंहटाएंatit ke aadhar par wartmaan banataa hai.
जवाब देंहटाएंabhar
बहुत ही सुन्दर और सार्थक मुक्तक,सादर आभार आदरणीय.
जवाब देंहटाएंपागल बन दुनियां में जीते हैं लोग,
दहशत ने कायर बना दिये हैं लोग।
कुछ का काम है गरीबों का दमन,
अमीरों के कुचक्र में फंसते हैं लोग ।
हम लोग यही तो भूल गए हैं। आपने याद दिलाया अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंआध्यात्म और जीवन दर्शन को समझाती रचना
जवाब देंहटाएंसादर
आग्रह है पढ़ें "अम्मा"
http://jyoti-khare.blogspot.in
बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना ..आभार
जवाब देंहटाएंएक एक पंक्ति प्रेरणाप्रद है और भारतीयता की और अग्रसर करती है |
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक और प्रभावी प्रस्तुति...
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