"मेरी एक पुरानी रचना"
लोगो को राहत पहँचाता।।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अमलतास खिलता-मुस्काता।।
डाली-डाली पर हैं पहने
झूमर से सोने के गहने,
पीले फूलों के गजरों का,
रूप सभी के मन को भाता।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अमलतास खिलता-मुस्काता।।
दूभर हो जाता है जीना,
तन से बहता बहुत पसीना,
शीतल छाया में सुस्ताने,
पथिक तुम्हारे नीचे आता।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अमलतास खिलता-मुस्काता।।
स्टेशन पर सड़क किनारे,
तन पर पीताम्बर को धारे,
दुख सहकर, सुख बाँटो सबको,
सीख सभी को यह सिखलाता।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अमलतास खिलता-मुस्काता।।
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सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंअमलतास पर बहुत ही सुन्दर रचना,आभार आदरणीय.
जवाब देंहटाएंताप इतना, रंग छिटकाता
जवाब देंहटाएंइस समय सोने की तरह लगता है, अमलतास.
जवाब देंहटाएंमित्र, परसों अमलताश के मनोहारी चित्र खींच कर लाया |अब कुछ दिनों के बाड़ गीत या लेख पोस्ट करूँगा |
जवाब देंहटाएंबहु ही सटीक अभिव्यक्ति ! घोर दुखोँ में सुखों का अहसास कोई अमलताश से सीखे ! प्रेरणाप्रद
रचना |
मित्र, परसों ही अमलताश के कुछ चित्र खींच कर कर लाया |लों एक प्रेरणाप्रद रचना सामने आ गयी |दुखोँ में भी सुखों का अनुभव ! बहुत ही सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंअति सुंदर.... मयंक जी... अमलतास पर कविता देखी, मेरा मन खुलकर मुस्काया...
जवाब देंहटाएंक्या बात
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
हमारा तो गर्मी से बुरा हाल है लेकिन कठिन घडी में कैसे हँसते मुस्कुराते हैं यह सीख दे रहा है अमलतास हमें ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
अमलतास की शिक्षाप्रद कविता ........
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना