शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।।
घोर तम है भरा आज परिवेश में,
सभ्यता सो गई आज तो देश में,
हो रहा है सुरा से यहाँ आचमन।
शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।।
दो सुमेधा मुझे मैं तो अनजान हूँ,
माँगता काव्य-छन्दों का वरदान हूँ,
चाहता हूँ वतन में सदा हो अमन।
शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।।
वन्दना आपकी नित्य मैं कर रहा,
शीश चरणों में, मैं आपके धर रहा,
आपके दर्शनों के हैं प्यासे नयन।
शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।।
तान वीणा की माता सुना दीजिए,
मेरे मन को सुमन अब बना दीजिए,
हो हमेशा चहकता-महकता चमन।
शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।।
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बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय 👌
जवाब देंहटाएं'वंदना 'चहकता -महकता 'चमन प्रांजल भाषा एवं समर्पण बोध की रचना शास्त्री जी की। सुन्दर मनोहर
जवाब देंहटाएंkabirakhadasaraimen.blogspot.com
veeruja,blogspot.com