रार का सिलसिला नहीं होता
ग़र न ज़ज़्बात होते सीने में
दिल किसी से मिला नहीं होता
आम में ज़ायका नहीं आता
वो अगर पिलपिला नहीं होता
तिनके-तिनके अगर नहीं चुनते
तो बना घोंसला नहीं होता
दाद मिलती नहीं अगर उनसे
तो बढ़ा हौसला नहीं होता
प्यार में बेवफा अगर होते
संग में काफिला नहीं होता
“रूप" आता नहीं बगीचे में,
फूल जब तक खिला नहीं होता
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रविवार, 27 जनवरी 2019
ग़ज़ल "सिलसिला नहीं होता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत लाजवाब शेर हैं ग़ज़ल के ...
जवाब देंहटाएंदिली दाद हर शेर पर शास्त्री जी ... नमस्कार ...
खूबसूरत पंक्तियाँ. मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंhttps://iwillrocknow.blogspot.com/
अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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