-- रिम-झिम करता सावन आया। गरमी का हो गया सफाया।। -- उगे गगन में गहरे बादल, भरा हुआ जिनमें निर्मल जल, इन्द्रधनुष ने रूप दिखाया। -- श्वेत-श्याम घन बहुत निराले, आसमान पर डेरा डाले, कौआ काँव-काँव चिल्लाया। -- जोर-शोर से बिजली कड़की, सहम उठे हैं लड़का-लड़की, देख चमक सूरज शर्माया। -- खेत धान से धानी-धानी, घर मे पानी बाहर पानी, मेघों ने पानी बरसाया। -- लहरों का स्वरूप है चंगा, मचल रहीं हैं यमुना-गंगा, पेड़ों ने नवजीवन पाया। -- झूले पड़े हुए घर-घर में, चहल-पहल है प्रांत-नगर में, झूल रही हैं ललिता-माया। -- ठलुओं ने महफिल है जोड़ी, मजा दे रही चाय-पकौड़ी, मानसून ने मन भरमाया।-- |
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बुधवार, 12 जुलाई 2023
बालगीत "कौआ काँव-काँव चिल्लाया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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