समीक्षा "सुन्दर सूक्तियाँ" अपने
पिछत्तर साल के जीवन में मैंने यह देखा है कि गद्य-पद्य में रचनाधर्मी बहुत
लम्बे समय से सृजन कर रहे हैं। लेकिन ऐसे लोग विरले ही हैं जो सूक्तियों रचना
में आज भी संलग्न हैं। "सुन्दर सूक्तियाँ" मेरे विचार से ऐसा ही एक
प्रयोग है। जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को सूक्तियों में बाँधकर सूक्तिकार हीरो
वाधवानी ने इस सूक्ति संग्रह में पिरोया है। आपके कार्य की जितनी प्रशंसा
की जाये वो कम ही होगी। यद्यपि
प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक विलक्षण प्रतिभा छिपी होती है, जो
अपनी रुचियों के अनुसार साहित्य की रचना करता है। किन्तु आज के परिवेश में सूक्तियों
की संरचना करना स्वयं में सराहनीय कार्य
है। ऐसे लोगों की गिनती विशिष्ट व्यक्तियों की श्रेणी में आती है। ऐसे
लोग अक्सर समाज सुधारक ही होते हैं। जो अपने गृहस्थ जीवन का निर्वहन करते हुए यह
विलक्षण कार्य करते हैं। कई दिनों से मैंने इस सूक्तियाँ संग्रह पर कुछ लिखने का मन बनाया। परन्तु अपने निजी कार्यों और दैनिक उलझनों के कारण समय नहीं निकाल पाया। क्योंकि भूमिका और समीक्षा के लिए मेरी बुकसैल्फ में कई पुस्तकें कतार में थीं। अतः समय मिलते ही अपनी आदत के अनुसार "सुन्दर सूक्तियाँ" के बारे में कुछ शब्द लिखने के लिए मेरी अंगुलियाँ कम्प्यूटर के की बोर्ड पर चलने लगी। साहित्यकार हीरो अब तक 5000 से अधिक
सूक्तियों की रचना कर चुके हैं और अभी भी सूक्तियाँ लिखने का क्रम जारी है। अब
तक आपकी छह पुस्तकें अदबी आइनों, प्रेरक अर्थपूर्ण कथन और सूक्तियाँ, सकारात्मक
सुविचार (देवनागरी सिन्धी), सकारात्मक अर्थपूर्ण सूक्तियाँ, मनोहर सूक्तियाँ और
सुन्दर सूक्तियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उदाहरण
के लिए यहाँ मैं सूक्तिकार हीरो वाधवानी जी की कुछ प्रमुख सूक्तियों को उद्धृत
कर रहा हूँ- 1-
"पुजारी
से अधिक पवित्र परोपकारी के हाथ होते हैं।" 2-
"प्यार
करनेवाले का दिल शरीर से बड़ा होता है।" 3-
"खुशी
की खबर मूर्छित को भी होश में ला सकती है" 4-
"गरीब
के लिए सारा जग सौतेला है।" 5-
"मन
की शान्ति स्वर्ग और अशान्ति नरक है।" 6-
"बरगद
की मृत्यु दम घुटने से नहीं होती है।" 7-
"प्रेम
पुल है और दुशमनी दरार।" 8-
"राष्ट्र
भाषा हीरा और मातृ भाषा मोती है।" 9-
"कुशल
कुम्हार के मटके मजबूत होते हैं।" 10- "सर्वोत्तम
सफाई मन की सफाई है।" मेरे
अनुसार इस संग्रह की अधिकांश सूक्तियाँ नीति के
श्लोकों से कम नहीं हैं। देखिए- "कर्तव्यनिष्ठ
बहाने नहीं बनाते हैं।" सत्य
के जीवन दर्शन को दर्शाती एक और सूक्ति भी देखिए- "अधिक
रोने के लिए आँखें भी मना करती है।" वैसे
तो इस संकलन की सभी सूक्तियाँ एक से बढ़कर एक हैं किन्तु यह सूक्ति भी बहुत
उपयोगी है- "रोशनी
घास-फूस को जलाने से नहीं होती" संकलन
की एक और सशक्त सूक्ति भी देखिए- "बेटियों
के बिना संसार ऐसा है जैसे नदियों के बिमना समुद्र।" कृति को पढ़कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि सूक्तिकार होरो वाधवानी ने अपनी कृति “सुन्दर सूक्तियाँ” में मानवीय संवेदनाओं के साथ-साथ सामाजिक और प्राकृतिक उपादानों को भी कुशलता के साथ पिरोया है। मुझे
पूरा विश्वास है कि कवि की अनमोल मोतियों से सुसज्जित कृति “सुन्दर
सूक्तियाँ” को पढ़कर सभी वर्गों के पाठक लाभान्वित होंगे
तथा समीक्षकों की दृष्टि से भी यह कृति उपादेय सिद्ध होगी। इस अनमोल संग्रह के
लिए मैं श्री हीरो वाधवानी को बधाई देता हूँ और इनके उज्जवल भविष्य की कामना
करता हूँ। हार्दिक
शुभकामनाओं के साथ। दिनांक-
17 जुलाई, 2023 समीक्षक (डॉ.
रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) कवि
एवं साहित्यकार टनकपुर-रोड, खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड) 262 308 E-Mail
. roopchandrashastri@gmail.com Website.
http://uchcharan.blogspot.com/ मोबाइल-7906360576, 7906295141 |
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मंगलवार, 18 जुलाई 2023
समीक्षा "सुन्दर सूक्तियाँ" (समीक्षक डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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