राजनीति वारांगना, दौलत का है खेल। मूषक और विडाल का, सम्भव होता मेल।। -- जनसेवक ने खो दिया, गौरव और गुमान। कदम-कदम पर बिक रहा, दीन और ईमान।। -- मारा-मारी सदन में, होता नित अवरोध। जनहित के कानून पर, नेता करें विरोध।। -- धर्म-जाति के नाम पर, जद्दोजहद-जिहाद। इसीलिए तो हो रहे, दंगे और फसाद।। -- घर परिवार-समाज में, स्वस्थ नहीं संवाद। गरिमा को रख ताख में, लोग करें बकबाद।। -- नहीं पुरोहित वो रहे, नहीं रहे यजमान। छल-बल से हैं तौलते, ग्राहक को सामान।। -- वीर और वीरांगना, सदमे में हैं आज। अपमानित करता उन्हें, यह निर्लज्ज समाज।। -- |
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गुरुवार, 27 जुलाई 2023
दोहे "मारा-मारी सदन में, होता नित अवरोध" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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