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रविवार, 24 अप्रैल 2011
"देखो कितने सारे आम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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munh me paani aaya
जवाब देंहटाएंdekhke itne aam
vaah vaah..
जवाब देंहटाएंआम से मुझे याद आया कि मैंने अपनी सहेली को आम तोड़ कर लाने का वादा किया था.... रात को चोरी से.....अपने इंस्टिट्यूट से...आम देख के एकदम मन कर रहा है कि अभी मिले तो नमक मिर्च लगा के चट कर जाऊँ..... :)
जवाब देंहटाएंइसी में पना बनाकर भी पिला देते।
जवाब देंहटाएंAam ke aam or guthliyo ke daam !
जवाब देंहटाएंmunh me paani a gaya shastri ji !
मुंह में पानी आ गया.
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट देखें
मिलिए हमारी गली के गधे से
आप आम दिखला रहे हैं,
जवाब देंहटाएंदिल को बहुत तरसा रहे है
कुछ खिलाने की भी बात करो 'शास्त्रीजी'
बोलो कब आप हमें बुलवा रहे हैं.
आभार शानदार प्रस्तुति के लिए.पर बुलाना न भूलिएगा,प्लीज. आम चीज ही ऐसी है कि
'मान न मान मै तेरा मेहमान'
दांत खट्टे करने वाली पोस्ट पंडित जी!!!
जवाब देंहटाएंमुंह में पानी लानेवाली बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा बालगीत।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
मजेदार है यह आम की कविता .....
जवाब देंहटाएंपेड़ों पर अमियों के गुच्छे,
जवाब देंहटाएंबल खाते लहराते हैं।
इन्हें तोड़ने सारे बच्चे,
बगिया में आ जाते हैं।।...
बच्चों की क्या कहें , मैंने बहुत चुरा-चुरा कर अमिया खायी है, अभी भी ललचाती हूँ।
.
वाह!
जवाब देंहटाएंडालों में लदे इन टिकोरों को देखकर कितने मनचले दौड़ पड़ते हैं तोड़ने के लिए।
बहुत आम खाए हैं पत्थर से तोड़ तोड़ के पेड़ों से!
जवाब देंहटाएंकाट-छीलकर, नमक मिला कर,
जवाब देंहटाएंचटनी बनती है बढ़िया।
खातीं है चटकारे लेकर,
यह चटनी बुढ़िया-गुड़िया।
वाह,बहुत उम्दा बाल कविता.
Wow, Aam bahut raseeley hain....
जवाब देंहटाएंबहुत उत्कृष्ट बाल गीत..आभार
जवाब देंहटाएंआम खाने का मन करने लगा ! ये कवितायेँ मुझे इतनी ज्यादा अच्छी लगती हैं बच्चों वाली ...बेजोड़ ! :-)
जवाब देंहटाएंmuh me paani aa gaya....ab bas kijiye age ka geet sunana...pahle aam kha le....:)
जवाब देंहटाएंMere munh mein bhi paani aa gaya in aamon ko dekh kar ...
जवाब देंहटाएं