द्वापर-त्रेता का घटनाक्रम, कितना सुखद-सरल लगता है, दूर देश में आना-जाना। ,दुनियाभर में मित्र बनाना, नहीं कठिन सम्बन्ध निभाना।। |
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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011
"दुनियाभर में मित्र बनाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत सुन्दर संदेश।
जवाब देंहटाएंद्वापर-त्रेता का घटनाक्रम,
जवाब देंहटाएंकलियुग में साकार हो गया।
आवश्यकताएँ होने पर,
सम्भव आविष्कार हो गया।।
बहुत सुन्दर, विमान को बस एक ही बात का मलाल रहता है कि वह रॉकेट की तरह सीधे ऊपर नहीं जा पाटा, यानी उड़ने के लिए उसे दौड़ना पड़ता है ! :)
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह...
जवाब देंहटाएंbahut sundar... kya kahun ...aik jahaj par bhi itni sundar Baal Kavita..vaah bahut sundar
जवाब देंहटाएंNice post.
जवाब देंहटाएंहरेक आदमी को सोचना चाहिए कि समाज में उसकी क्या पहचान है ?
उसे किस तरह के सुधार की ज़रुरत है ?
बेहतर व्यक्तित्व और बेहतर समाज के निर्माण के लिए भी और अपनी संतुष्टि के लिए , हर तरह से यह बात लाजिमी है.
दिल है ख़ुश्बू है रौशनी है मां
अपने बच्चों की ज़िन्दगी है मां
सुन्दर कविता ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता....
जवाब देंहटाएंक्या बात है! बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंकितनी सुंदर हवाई जहाज की कविता ......
जवाब देंहटाएंआवश्यकताओं ने अविष्कारों को जन्म दिया ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना !
सुन्दर सन्देश देता बाल रचना
जवाब देंहटाएंवाह वाह बहुत सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंसुंदर एवं सार्थक संदेश।
जवाब देंहटाएं---------
प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्यादा खतरनाक है ?
कितना सुखद-सरल लगता है,दूर देश में आना-जाना।,दुनियाभर में मित्र बनाना,नहीं कठिन सम्बन्ध निभाना।।
जवाब देंहटाएंएक उपलब्धि कि ख़ुशी का बोध कराती ......वाह....बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएंbahut pyari kavita bachcho ko pasand aai.
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