नित्य-नियम से चबा-चबा कर, प्रातराश में तुम खाओ।। |
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शनिवार, 16 अप्रैल 2011
"यह चबेना अपनाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ' मयंक')
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wah...saral-seedhee baat aur kitni achchi bhi.
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि कोई भी विषय आपसे अछूता नहीं रहेगा ..बहुत अच्छी सीख देती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वास्थयवर्धक स्वादिष्ट कविता. :)
जवाब देंहटाएंवाह क्या खूब अन्दाज़ है प्रस्तुत करने का कि यदि कोई ना भी खाता होगा तो आज जरूर खायेगा…………बहुत सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंनये नये विषयों पर सुन्दर रचनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत खाया है परमल और चना ! मुझे पसंद भी है--
जवाब देंहटाएंआज की पोस्ट के लिए धन्यवाद शास्त्री जी !
आजकल आपकी पोस्ट देखकर मुंह में पानी का दरिया आ जाता है..
जवाब देंहटाएंमयंक जी,
जवाब देंहटाएंपुराने दिन याद दिला दिए। बंगाल मे इसे 'मुड़ी' कहा जाता है। मसालेदार बना कर जगह-जगह बिकती है, 'झाल मुड़ी' के नाम से। सस्ता, सुंदर, टिकाउ नाश्ता है हर जगह का।
बहुत अच्छी सीख....…बहुत सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंअब तो यह स्वादिष्ट स्वास्थ्यवर्धक चबेना अपनाना ही पड़ेगा
जवाब देंहटाएंमैने तो आज खाया भी.
जवाब देंहटाएंवाकई मजेदार है.
chana parval dono hi bahut acchi aur swasthyavardak hai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही, पर्मल तो हम भी यहां कभी कभी खाते हे चने भी बहुत स्वाद लगते हे,
जवाब देंहटाएंप्रातराश !!
जवाब देंहटाएं:-)