दर्दे-मोहब्बत मोहब्बत दर्द बन जायेगी ये सोचा न था हमने भरी काँटों से राहों में बनाया आशियां हमने वो मंजिल तक हमें लाकर अकेला छोड़ जायेगें बनाया अपने दिल का क्यों उन्हें फिर राजदाँ हमने भुलाने से न भूले हम जो कस्में उसने खाईं थी गुलिस्तानों में भी अक्सर उन्हें ढूँढा किया हमने अंधेरों में मेरी वो रोशनी बन करके उतरे थे गमों की आँधियों में भी सजाया आशियाँ हमने हवायें रुख बदल देतीं तो शाखें बच गयी होती उन्हें शाखों की जद में क्यों बनाया आशियॉ हमने हमें ‘बदनाम’ हो जाने का कोई गम नहीं है अब चलो वो हक मोहब्बत का अदा भी कर दिया हमने। |
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मंगलवार, 19 अप्रैल 2011
दर्दे-मोहब्बत-गुरूसहाय "बदनाम" (प्रस्तोता-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंbhtrin bhtrin .... akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गजल जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गज़ल्।
जवाब देंहटाएंहमें ‘बदनाम’ हो जाने का कोई गम नहीं है अब
जवाब देंहटाएंचलो वो हक मोहब्बत का अदा भी कर दिया हमने।
भटनागर जी की उम्दा प्रस्तुति से परिचय के लिए आभार।
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गुरु सहाय भटनागर जी की बहुत खूबसूरत गज़ल प्रस्तुत की है ...आभार
जवाब देंहटाएंumda gazal bhatnagar ji kee.abhaar.
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurat Ghazal hai
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