साहित्यिक गतिविधियाँ सारी, हुई लुप्त अंधियारों में। हत्या और बलात्-कर्म की, खबर छपी अखबारों में।। तानाशाही और मनमानी, चौथा खम्भा करता है, छँटे हुए इन पढ़े लिखों से, तन्त्र प्रजा का डरता है, तूती की आवाज़ दब गई, कर्कश ढोल-नगाड़ों में। हत्या और बलात्-कर्म की, खबर छपी अखबारों में।। कोकिल के मीठे सुर केवल, डाली तक ही सीमित है, गंगा जी की पावन धारा, मैली सी है-दूषित है, काग सुनाते बेढंगे स्वर, आँगन और चौबारों में। हत्या और बलात्-कर्म की, खबर छपी अखबारों में।। |
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बुधवार, 13 अप्रैल 2011
"खबर छपी अखबारों मे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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कोकिल के मीठे सुर केवल,
जवाब देंहटाएंडाली तक ही सीमित है,
गंगा जी की पावन धारा,
मैली सी है-दूषित है,
काग सुनाते बेढंगे स्वर,
bahut sateek abhvyakti .
काग सुनाते बेढंगे स्वर,
जवाब देंहटाएंआँगन और चौबारों में।
हत्या और बलात्-कर्म की
खबर छपी अखबारों में।।
बहुत खूब ! एकदम सही बात कही शास्त्री जी आपने रचना के माध्यम से !
satya ko darshati rachna
जवाब देंहटाएंयही है। आपने एक अच्छे मुद्दे को पंक्तियों में बांधा है। बेहतरीन। इससे जुड़ा कुछ मैंने भी लिखा है।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आयें, स्वागत है
दुनाली
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
यही छापकर अखबारों ने अपना स्तर गिरा लिया है।
जवाब देंहटाएंहक़ीकत बयानी है।
जवाब देंहटाएंसही है. आज अखबार केवल आपराधिक खबरों तक ही सिमट गये हैं.
जवाब देंहटाएं'कोकिल के मीठे सुर केवल,डाली तक ही सीमित है'
जवाब देंहटाएंकाश! कोकिल के मीठे स्वर ही सर्वत्र गूंजें.
अखबार और मिडिया को नकारात्मक खबरों को कम करके सकरात्मक पक्ष को ज्यादा उजागर करना चाहिये तभी कोकिल के स्वर सर्वत्र गूंजेंगे.
काव्य के माध्यम से सच बयां कर दिया आपने दुनिया का...बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंवर्तमान को आइना दिखाता हुआ सामयिक और सुन्दर गीत लिखा है आपने.बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी वर्तमान हालात पर बहुत ही करारा व्यंग्य किया है आपने| खास कर लोकतन्त्र के चौथे और सब से मजबूत समझे जाने वाले स्तम्भ को भी नहीं बख्शा है आपने|
जवाब देंहटाएंआपने सत्य के दर्शन करा दिये..
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही ...
जवाब देंहटाएंतानाशाही और मनमानी,
जवाब देंहटाएंचौथा खम्भा करता है,
छँटे हुए इन पढ़े लिखों से,
तन्त्र प्रजा का डरता है,
आपने सभी की दुखती रग पर हाथ रखा है शास्त्री जी ! आपकी तीक्ष्ण दृष्टि को नमन !
sateek baat!
जवाब देंहटाएंकाग सुनाते बेढंगे स्वर,
जवाब देंहटाएंआँगन और चौबारों में।
हत्या और बलात्-कर्म की
खबर छपी अखबारों में।।
आजकल अखबार पढने का मन ही नही होता बस ऐसे ही समाचारों का संकलन रह गयी हैं अखबारें। आभार सुन्दर रचना के लिये।
तूती की आवाज़ दब गई,
जवाब देंहटाएंकर्कश ढोल-नगाड़ों में।
हत्या और बलात्-कर्म की,
खबर छपी अखबारों में।।
बहुत सटीक कलम चली है....यही कुछ हो रहा है और ढोल-नगाड़ों में तूती की आवाज दबकर रह गई है....