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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011
"चार दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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हर एक दोहा सच्चाई दिखाता हुआ..
कुँवर जी,
अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंपाँ साल तक कुछ न कहा जाये।
जवाब देंहटाएं*पाँच
जवाब देंहटाएंsamaajik buraiyon ko darshaate hue atiuttam dohe.
जवाब देंहटाएंपाँच साल तक शान से, आँखे रहा दिखाय.
जवाब देंहटाएंसोलहों आने सच...
शास्त्री जी पांच साल पुरे तो होने ही चाहियें.नहीं तो पहले ही लुढके, तो फिर अरबों खरबों का चुनाव.सहन करनी पड़ेंगी आँखें.
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पर आईये.रामराज्य पर दूसरी पोस्ट जारी कर दी है.
सटीक और प्रासंगिक प्रस्तुति ...चारों दोहे बेमिसाल
जवाब देंहटाएंक्या खूब दिखया आपने समाज का आइना ...इन दोहों से ... सादर
जवाब देंहटाएंव्यवस्था की पोल खोलते रोचक और विचारोत्तेजक दोहे।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंव्यंग्य के साथ ही जनसामान्य की विवशता और गहरी पीड़ा भी आपके दोहों में समाहित है।
जवाब देंहटाएंसच्चाई से रु-ब-रु कराते और व्यवस्था पर करारा वार करते दोहे बेहद शानदार हैं।
जवाब देंहटाएंati sundar sir........
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