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रविवार, 3 अप्रैल 2011
"जन का तन्त्र या तन्त्र का जन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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हम भी इस बर्बरतापूर्ण कृत्य की घोर निंदा करते है !
जवाब देंहटाएंये तो हद है।
जवाब देंहटाएंसारा देश इस ऐतिहासिक खुशी के अवसर पर झूम रहा है। और इसी देश के एक हिस्से में ऐसी बर्बरतापूर्ण कार्र्वाई। इसकी निंदा की जानी चाहिए।
bahut nindniy .
जवाब देंहटाएंsachmuch nindniy
जवाब देंहटाएंयदि सच ही जश्न मनाने पर पाबंदी है तो निंदनीय है ...जश्न के साथ कुछ और कुकृत्य किया जा रहा हो तो रोकना ज़रूरी भी है
जवाब देंहटाएंसंगीता जी की बात दोहराता हूँ...
जवाब देंहटाएंसारा देश इस ऐतिहासिक खुशी के अवसर पर झूम रहा है। और इसी देश के एक हिस्से में ऐसी बर्बरतापूर्ण कार्र्वाई। इसकी निंदा की जानी चाहिए। .जश्न के साथ कुछ और कुकृत्य किया जा रहा हो तो रोकना ज़रूरी भी है
जवाब देंहटाएंप्रसन्नता व्यक्त करने का अधिकार और समुचित व्यवस्था भी हो।
जवाब देंहटाएंअरे!! ऐसा क्यों किया गया? क्या वहां किसी दुर्घटना की आशंका थी? इस कार्रवाई की तो निंदा की ही जानी चाहिए.
जवाब देंहटाएंbahut khed hai ki jahaan main rahti hoon vahan yesa hua.per har sikke ka doosra pahloo bhi hota hai.kuch anhoni na ho is liye yesa hua.humne bhi to bahut shaalinta se celebrate kiya hai.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंmain Arun chandra rai aur Sangeeta swaroop ji ki baat se sahmat hoon.
जवाब देंहटाएंकोई कारण भी तो रहा होगा। धारा 144 ऐसे ही तो नहीं लगा दी जाती?
जवाब देंहटाएंdehradun police ka dimaag kharaab ho gaya hai!
जवाब देंहटाएंये तो बर्बरता की हद हो गयी…………और वो भी इस अवसर पर ……………जब पूरा देश खुशी मे सराबोर है। सबको मिलकर निन्दा करनी चाहिये और ऐसे लोगो के खिलाफ़ एक्शन लेना चाहिये।
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