"ग़ज़ल" वो शम्मा मोहब्बत की, जला कर चले गये। एक याद मेरे दिल में, बसा कर चले गये।। बुझती नहीं है आग, लगायी जो सनम ने, यादों की पालकी में, बिठा कर चले गये।। वो इश्क के वादों में, कसम प्यार की खाकर, दामन को अपने हमसे, छुड़ा कर चले गये।। खुशियाँ थी बेशुमार, जब वो पास थे मेरे, वो शम्मा आरजू की, बुझा कर चले गये।। अपनी तो जफा याद है, उनकी न वफा न याद, घर को मेरे ‘बदनाम’, बनाकर चले गये।। |
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गुरुवार, 28 अप्रैल 2011
'बदनाम' शायर की एक ग़ज़ल (प्रस्तोता-डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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खुशियाँ थी बेशुमार, जब वो पास थे मेरे,
जवाब देंहटाएंवो शम्मा आरजू की, बुझा कर चले गये..
Very touching lines.
.
"वो इश्क के वादों में, कसम प्यार की खाकर,
जवाब देंहटाएंदामन को अपने हमसे, छुड़ा कर चले गये।।"...
wonderful gazal...
वो शम्मा मोहब्बत की, चला कर चले गये।
जवाब देंहटाएंएक याद मेरे दिल में, बसा कर चले गये।।
मुझे लगता है कि चला कर चले गए की जगह जला कर चले गए लिखा जाना चाहिये था.
तीखे तड़के का जायका लें
संसद पर एटमी परीक्षण
Nice post.
जवाब देंहटाएंपोस्ट बता रही है खटीमा लोकेशन आपकी
हम समझे थे कि आप सम्मेलन में चले गए
बहुत ही शानदार गज़ल है।
जवाब देंहटाएंखुशियाँ थी बेशुमार, जब वो पास थे मेरे,
जवाब देंहटाएंवो शम्मा आरजू की, बुझा कर चले गये..
बहुत ही सशक्त शे'र लगे !
सम्मेलन की बधाई !
umdaa........!!!
जवाब देंहटाएंबुझती नहीं है आग, लगायी जो सनम ने,
जवाब देंहटाएंयादों की पालकी में, बिठा कर चले गये।।
..बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..
दिल को छू गई..
जवाब देंहटाएंशानदार गज़ल ....
जवाब देंहटाएंबदनाम जी की अति सुंदर शायरी जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंखुशियाँ थी बेशुमार, जब वो पास थे मेरे,
जवाब देंहटाएंवो शम्मा आरजू की, बुझा कर चले गये।।
बहुत अच्छी ‘बदनाम’ जी की ग़ज़ल है।
बेहतरीन गज़ल!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंSHAYRI MEN DAM HAI.
जवाब देंहटाएं............
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