उसकी चंचल-मादक मूरत,
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बुधवार, 27 अप्रैल 2011
"शिथिलतन-यवा मन की कविता" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
उसकी चंचल-मादक मूरत,
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हा हा हा ……………मज़ा आ गया पढकर ।
जवाब देंहटाएंएक नये अन्दाज़ की गुदगुदाती कविता दिल को भा गयी।
रुपसी भुतनी का खूब अद्भुत विवेचन
जवाब देंहटाएंहमें तो भा गयी मयंक जी।
जवाब देंहटाएं---------
देखिए ब्लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्वासी आज भी रत्नों की अंगूठी पहनते हैं।
बहुत ही बढ़िया रचना..
जवाब देंहटाएंतभी एक सादी सी महिला,
जवाब देंहटाएंआई करने को व्यवधान।
मुझको दर्पण दिखलाकर,
बोली-रे नर! हो सावधान।।
रंग में भंग !!! :)
सच ही कभी कभी ख्वाब भी कितना डरा देते हैं ... अच्छा ख़ासा रंग जमा हुआ था ..सब तहस नहस हो गया ...बहुत पसंद आई रचना ..और सोचने पर भी विवश कर दिया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ! हमें तो बहुत अच्छी लगी यह रचना..आभार
जवाब देंहटाएंachi lagee aapki rachna!!
जवाब देंहटाएंsir ji namskaar
जवाब देंहटाएंbahut sunder sapna
aapne sapne ko kitne sunder sabdo me sawara he badhai man prasan ho gaya
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंबेहद रोमांटिक.. युवा मन की कविता..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना..
जवाब देंहटाएंहा हा हा .बहुत खूब .मजेदार भी रोमांटिक भी .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .. शानदार
जवाब देंहटाएंएक खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी|
आशा
man to kabhi vradh nahi hota sapno par kisi ka koi jor nahi....bahut hi rochak lagi yeh kavita.
जवाब देंहटाएंआपको भले न आई हो..हमें तो पसंद आई...
जवाब देंहटाएंबहुत मस्त मज़ा आया आया पढ़ा के रोमाटिक भी हसी भी और वास्तविकता भी
जवाब देंहटाएं'मुखड़ा निस्तेज देख लेना,दर्पण में एक बार अपना।हो जाएगा आभास तभी,यह सच था या केवल सपना।।'
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी सावन के अंधे को सब हरा हरा ही नजर आता है.केशवदास जी तो खीज कर कह उठते है
'केशव केशन अस करि,जस अरिहु न कराहीं
मृग लोचनी नव सुंदरी बाबा बाबा कहि कहि जाहि'
शास्त्रीजी,यदि आपको यह कविता अच्छी न लगती होती तो छापते ही क्यूँ आप.लेकिन,बचाव का रास्ता तो अच्छा ढूंढा है आपने.
माखन खा कर कृष्ण भी तो मैया से कहते हैं
'मैया मेरी मै नहीं माखन खायो.'
वाह शास्त्री जी बहुत ही मज़ेदार रचना लिखी है ...!!
जवाब देंहटाएंहमें भी अच्छी लगी
पढ़कर अच्छा लगा मगर आपने इस पोस्ट में कोई फोटो नहीं लगाई???
जवाब देंहटाएंतीखे तड़के का जायका लें
संसद पर एटमी परीक्षण
आनन्द आ गया शास्त्री जी! दिल को गुदगुदा गई यह श्रंगार रस और वीभत्स रस में डूबी आपकी पुरानी डायरी की यह सजीव कविता --
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंयुवा मन के उद्गार या मन के युवा उद्गार।
जवाब देंहटाएंनवण प्रणाम
जवाब देंहटाएं