अपने पिटारे से! खिल रहे हैं चमन में हजारों सुमन, भाग्य कब जाने किस का बदल जायेगा! कोई श्रृंगार देवों का बन जायेगा, कोई जाकर के माटी में मिल जायेगा!! कोई यौवन में भरकर हँसेगा कहीं, कोई खिलने से पहले ही ढल जायेगा! कोई अर्थी पे होगा सुशोभित कहीं, कोई पूजा की थाली में इठलायेगा! हार पुष्पांजलि का बनेगा कोई, कोई जूड़े में गोरी के गुँथ जायेगा! |
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रविवार, 17 अप्रैल 2011
"माटी में मिल जायेगा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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पुष्प की अभिलाषा के बाद दूसरी सुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेखन के लिए मेरी बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आयें, आपका स्वागत है
बचें ऑनलाइन जॉब्स की धोखाधड़ी से
बहुत सुंदर कविता जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहद सरल शब्दों में प्रभावी कथन !भाग्य ऐसा ही होता है,आभार ...
जवाब देंहटाएंहार पुष्पांजलि का बनेगा कोई,
जवाब देंहटाएंकोई जूड़े में गोरी के गुँथ जायेगा!
बहुत सुंदर कविता लिखी है शास्त्री जी --कभी माखनलाल चतुर्वेदी की कविता पढ़ी थी सिक्स या आठवी में --आज याद आ गई --
यही तो पुष्प की अभिलाषा है।
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (18-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
पुष्प की अभिलाषा नहीं एक कवि की सोच है कि किस का भाग्य किसको कहाँ ले जाएगा? उसके सारे संभावित परिणामों को अच्छे ढंग से रचा है.
जवाब देंहटाएंबेहद सरल शब्दों में बहुत सुंदर कविता, आभार
जवाब देंहटाएंapna apna bhagya hai..
जवाब देंहटाएंमाखनलाल जी की 'पुष्प की अभिलाषा' और मयंक जी की इस कविता में एक विशेष अन्तर पाया
जवाब देंहटाएंवह यह कि एक तरफ पुष्प की तमाम परिणतियों में उसकी चाह एकनिष्ठ होना चाह्ती है.
दूसरी तरफ मयंक जी इस कविता मे पुष्प की नियतियों का खुला चित्रण है, उसपर मानवीय इच्छाओं की जबरन लदाई नहीं की गई है.
........... यही खासियत लगती हैं मुझे इस कविता मे.
माटी में मिलकर भी सुमन अपनी खुशबू और ऐसा रूप बिखेर जाता है जो जेहन में बैठा कर यदि सुमिरन किया जाये तो बार बार सुखद एहसास देता है.
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति के लिए बधाई.
जाट देवता की राम राम
जवाब देंहटाएंपुष्प की अभिलाषा सी ही सुन्दर कविता !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता जी, धन्यवाद
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