तुमने अमृत बरसाया तो, मैं कितना अभिभूत हो गया! मन के सूने से उपवन में, फिर बसन्त आहूत हो गया! आसमान में बादल गरजा, आशंका से सीना लरजा, रिमझिम-रिमझिम पड़ीं फुहारें, हरा-भरा फिर ठूठ हो गया! चपला चम-चम चमक उठी है, धानी धरती दमक उठी है, खेतों में पसरी हरियाली, मन प्रमुदित आकूत हो गया! जब स्वदेश पर संकट आया, सीमा पर वैरी मंडराया, मातृ-भूमि की बलिवेदी पर फिर से धन्य सपूत हो गया! |
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सोमवार, 26 अप्रैल 2010
“धन्य सपूत हो गया!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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सुन्दर शब्द चयन के साथ बहुत ही सार्थक एवं लयबद्ध गीत ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंhttp://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com
जब स्वदेश पर संकट आया,
जवाब देंहटाएंसीमा पर वैरी मंडराया,
मातृ-भूमि की बलिवेदी पर
फिर से धन्य सपूत हो गया!
Bahut khoob !
बहुत ही सुन्दर और लयबद्ध गीत्।
जवाब देंहटाएंaap hamesha hi nirali vidha mein likhte hai sir :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंsundar chitran...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा! ख़ूबसूरत गीत!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंशानदार
जानदार रचना ................बधाई !
- अलबेला खत्री
तुमने अमृत बरसाया तो,
जवाब देंहटाएंमैं कितना अभिभूत हो गया!
मन के सूने से उपवन में,
फिर बसन्त आहूत हो गया!
बहुत सुन्दर भाव...पुरी रचना ही बहुत अच्छी है...साथ ही प्रेरणादायक भी...
सुन्दर, मधुर...
जवाब देंहटाएं"जब स्वदेश पर संकट आया,
जवाब देंहटाएंसीमा पर वैरी मंडराया,
मातृ-भूमि की बलिवेदी पर
फिर से धन्य सपूत हो गया!"
सार्थक और प्रेरणादायक !
वाह शास्त्रीजी, बारिश की बात कर दी, यहाँ तो बूंद-बूंद को तरस रहे हैं। लेकिन अन्त में देश भक्ति का जज्बा भर दिया आभार।
जवाब देंहटाएंजब स्वदेश पर संकट आया,
जवाब देंहटाएंसीमा पर वैरी मंडराया,
मातृ-भूमि की बलिवेदी पर
फिर से धन्य सपूत हो गया
वाह शास्त्री जी ... कितना अनुपम लिखा है .. शब्दों में ग़ज़बका आकर्षण है ...
guru ji....
जवाब देंहटाएंbahut sundar geet.