काँटों में भी मुस्काते हैं। सबके मन को बहलाते हैं।। |
सुन्दर सुन्दर गुल गुलाब के, सारा उपवन महकाते हैं। |
काँटों में भी मुस्काते हैं। सबके मन को बहलाते हैं।। |
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काँटों में भी मुस्काते हैं। सबके मन को बहलाते हैं।। |
सुन्दर सुन्दर गुल गुलाब के, सारा उपवन महकाते हैं। |
काँटों में भी मुस्काते हैं। सबके मन को बहलाते हैं।। |
काँटों में भी मुस्काते हैं।
जवाब देंहटाएंसबके मन को बहलाते हैं।।
बहुत सुंदर .....
बहुत सुन्दर गीत्।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
बहुत सुंदर शाश्त्री जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंचित्र के साथ गीत भी बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंअच्छे भावपूर्ण उद्गार, कांटों में भी मुस्काते हैं ,
जवाब देंहटाएंसबके मन को बहलाते हैं।
आपकी कविता पढ़ने पर लू में शीतल छाया की सुखद अनुभूति मिलती है।
जवाब देंहटाएंनागफनी की शैया पर भी,
जवाब देंहटाएंये हँसते-खिलते जाते हैं।
waah!
बहुत ही खुबसुरत रचना.......मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" साथ ही मेरी कविताएँ हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" पर प्रकाशित....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे....धन्यवाद।
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