आज एक पुराना गीत प्रस्तुत है जीने का ढंग हमने, ज़माने में पा लिया। सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।। दुनिया में जुल्म-जोर के, देखें हैं रास्ते, सदियाँ लगेंगी उनको, भुलाने के वास्ते, जख्मों में हमने दर्द का, मरहम लगा लिया। सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।। हमने तो दुश्मनों की, हमेशा बड़ाई की, पर दोस्तों ने बे-वजह, हमसे लड़ाई की, हमने वफा निभाई, उन्होंने दगा किया। सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।। आया गमों का दौर तो, दिल तंग हो गये, मित्रों में मित्रता के भाव, भंग हो गये, काँटों को फूल मान, चमन में सजा लिया। सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।। |
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बहुत दर्द भरा गीत दिल को छू गया ----बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंमांसाहारी निगलते, तला कलेजा रान ।
जवाब देंहटाएंकुक्कुर जैसा नोचते, तान तान हैरान ।
तान तान हैरान, दर्द का डाल मसाला ।
बना रहे स्वादिष्ट, आप क्यूँ गैर निवाला ?
रहिये फक्कड़ मस्त, रहे दुनिया ठेंगे पर ।
हो जाएँ अभ्यस्त, मार्ग दिखलायें गुरुवर ।।
दर्द में सराबोर ग़ज़ल...!
जवाब देंहटाएंसीख लिया हमने गमों को दिल में उतारने का फन...
ये ख़ज़ाने यूँ महफ़िलों में लुटाए नहीं जाते....
सादर!!!
:)
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जवाब देंहटाएंआया गमों का दौर तो, दिल तंग हो गये,
मित्रों में मित्रता के भाव, भंग हो गये,
काँटों को फूल मान, चमन में सजा लिया।
सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।।बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं एक शैर इन पंक्तियों के नाम ज़नाब शास्त्री जी की नजर -
रफीकों से रकीब अच्छे ,जो जलके नाम लेतें हैं ,
गुलों से खार बेहतर हैं ,जो दामन थाम लेतें हैं .
बहुत सुंदर रचना सर...
जवाब देंहटाएंसादर।
बदलते हालत को देख यूँ ही मन बीते स्वर्णिम क्षणों को ढूंढता फिरने लगता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चिंतनशील प्रस्तुति
आभार
वाह वाह
जवाब देंहटाएंजिगर इनका गजब का निकला
दर्द का बसा एक शहर निकला !
हमने तो दुश्मनों की, हमेशा बड़ाई की,
जवाब देंहटाएंपर दोस्तों ने बे-वजह, हमसे लड़ाई की,
हमने वफा निभाई, उन्होंने दगा किया।
सारे जहाँ का दर्द, जिगर में बसा लिया।।
क्या बात हो गयी जो इतना दर्द उतर आया………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
शास्त्री जी की पोस्ट पर,,,,
जवाब देंहटाएंजुल्म देख कर दुनिया में, दिल में उठता दर्द
जख्म जमाना क्या जाने,जालिम दुनिया बेदर्द,,,
बढिया!
जवाब देंहटाएंदिल को छू जाता बहुत सुन्दर गीत..
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी उत्कृष्ट
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