संस्मरण:- ‘‘आर्य समाज: नागार्जुन की दृष्टि में’’ राजकीय महाविद्यालय, खटीमा में हिन्दी के विभागाध्यक्ष वाचस्पति शर्मा थे । बाबा नागार्जुन अक्सर उनके यहाँ प्रवास कर लिया करते थे । इस बार भी जून के अन्तिम सप्ताह में बाबा का प्रवास खटीमा में हुआ । दो जुलाई, 1989, महर्षि दयानन्द विद्या मन्दिर टनकपुर में बाबा नागार्जुन के सम्मान में कवि गोष्ठी का आयोजन था । उसमें बाबा ने कहा शास्त्री जी 5, 6, 7 जुलाई को मैं खटीमा मे आपके घर रहूँगा । पाँच जुलाई को प्रातःकाल प्रातःकाल शर्मा जी का बड़ा पुत्र अनिमेष बाबा को मेरे निवास पर पहुँच गया । 6 जुलाई को सुबह बाबा का मनपसन्द नमकीन दलिया नाश्ते में बनाया गया । बाबा जी बड़े ही अच्छे मूड में थे । दलिया कुछ गरम था । उसी समय बाबा ने अपने जीवन के बाल्यकाल का संस्मरण सुनाया - ![]() ‘‘शास्त्री जी उस समय मेरी आयु 12 या 14 वर्ष की रही होगी । उस समय में संस्कृत विद्यालय बनारस में पढ़ता था । मन में विचार आया कि इलाहाबाद में पं0 गंगाप्रसाद उपाध्याय आर्य समाज के बहुत बड़े कार्यकर्ता हैं, उनसे मिला जाये । उस समय आर्य समाज की बड़ी धूम भी थी । मैंने अपने दो सहपाठी साथ में चलने के तैयार कर लिए तो पदल ही बनारस से इलाहाबाद को चल पड़े । चलते-चलते प्यास लगने लगी । आगे एक गाँव रास्ते में पड़ा तो कुएँ पर गये । पनिहारिनों ने पानी पिलाने से मना कर दिया और कहा भाई तुम पण्डितों के लड़का मालूम होते हो । हम तो नीच जाति की है, हम तुम्हारा धर्म नही बिगाड़ेंगी । प्यास बहुत जोर की लगी थी । हमने बहुत अनुनय-विनय की तो उन्होंने पानी पिलाया । हम तीनों ने ओक से पानी पिया । उसी रास्ते पर एक ऊँट वाला भी जा रहा था । वह आगे-आगे सबसे कहता चला जा रहा था कि भाई पीछे जो तीन ब्राह्मण लड़के आ रहे हैं , इन्होंने दलितों के कुएँ पर पानी पिया है । इनका धर्म भ्रष्ट हो गया है । अतः लोग हमें बड़ी उपेक्षा की दृष्टि से देखते । अन्ततः हमने रास्ता छोड़ खेतो की मेढ़-मेढ़ चलना शुरू कर दिया । साथ के दोनों सहपाठी तो कष्टों को देख कर घबरा कर साथ छोड़ कर वापिस चले गये...वगैरा-वगैरा । किसी तरह इलाहाबाद पहुँचा तो पं0 ग्रंगाप्रसाद उपाध्याय का घर पूछा- लोगों ने बताया कि चैक में पंडित जी रहते हैं । खैर पण्डित जी के घर पँहुचा, उनकी श्रीमती जी से कहा बनारस से आया हूँ, पैदल, पण्डित जी से मिलना है । उन्होंने प्यार से भीतर बुलाया, तख्त पर बैठाया और गर्म-गर्म दूध एक कटोरे में ले आयीं । जब मैंने दूध पी लिया तो उन्होंने कहा कि तुम विश्राम करो । पं0 जी शाम को 7 बजे तक आयेंगे । शाम को जब पण्डित जी आये तो बातचीत हुई । उन्होंन कहा कि तुम बहुत थके हो कल सभी बातें विस्तार में होगी और अपनी पत्नी कलावती को आवाज लगाई, कहा कि देखो ये अपने सत्यव्रत जी के ही समान हैं , इनको 3-4 दिन तक खूब खिलाओ-पिलाओ.....वगैरा-वगैरा । 3-4 दिन तक पण्डित जी के यहाँ रहा खूब प्रेम से बाते हुईं । जब विदा हुए तो पण्डित जी, उनकी पत्नी और पुत्र सत्यव्रत रेलगाड़ी पर पहुँचाने आये , टिकट दिलाया । अन्त में उनकी पत्नी ने (उस समय में ) दो रुपये जेब खर्च के लिए दिये । पण्डित जी बोले कि देखो कभी पैदल मत आना । जब भी इच्छा हो टिकट कटा कर रेलगाड़ी से आया करो । उसके पश्चात 2-3 बार पण्डित जी के यहाँ गया व एक - एक सप्ताह ठहरा ।" अन्त में बाबा नागार्जुन ने बताया कि ‘आर्य समाज बहुत ही अच्छी संस्था है’ परन्तु आजकल पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय सरीखे लोगों की कमी हो गयी है ।’’ साथ ही बताया कि ’’आर्य समाज ऊँचा उठने की प्रथम सीढ़ी है ।’’ |
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shukria
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बाबा नागार्जुन का संस्मरण बहुत रोचक है..उन्हें ह्रदय से नमन !
जवाब देंहटाएंआर्यसमाजी बन कर 'सत्यार्थ प्रकाश' पढ़ कर ही तो भगत सिंह भी क्रांतिकारी बने थे। यदि आज भी आर्यसमाज को RSS के शिकंजे से मुक्त कर लिया जाये तो उसका कोई जवाब नहीं है।
जवाब देंहटाएंबाबा का संस्मरण बहुत ही प्रेरक लगा, आभार..
जवाब देंहटाएंप्रेरक संस्मरण,,,के लिए आभार,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST...: जिन्दगी,,,,
achha prasang guru jee, ye picture shaayad aapne pehle bhee lagaayee hai!
जवाब देंहटाएंरोचक...!
जवाब देंहटाएंप्रेरक संस्मरण........
जवाब देंहटाएंआपको जन्माष्टमी की शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंयूनिक तकनीकी ब्लाग
प्रथम बार आपके ब्लॉग पर आने का सौभाग्य मिला अच्छा लगा.और उस पर यह बाबा की सुंदर स्मृति साधुवाद
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